Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 22
________________ (१२) या, धरता मन पाणंद ॥ वलि दिवस केटले गए, जल खूटयु नही बुंद ॥४॥ लोक सहु आकुल थ्या, बूट ग लाग्या प्राण ।। मरण मान सहुको प्रया, सहुनी श्राशे हाण ॥५॥ ॥ढाल नवमी ॥ पारधीयानी देशी॥ ॥नांखे एम मदालसा रे, विनय करीने नेह रे ॥प्रीतमजी।मरशे सहुए मानवी रे, पाणी पाखें एह रे॥१॥प्रीतमजी ॥ तुमें मारा आतमजी, तमने कहूं जेमतेमजी॥जल मलशे कहो केमजी के॥ करवो करवोरे उपाय कोश तेह रे ॥२॥प्रीत ॥ ए प्रां कणी ।। कुमर कहे जल केम मले रे, खारा समुश्म कार रे॥प्री०॥दीपकूप को नहीं रे, सुणी सुकु लिणी नार रे ॥प्री० ॥३॥ मुज प्रानरण करंडियो रे, स्वामी नघाडो एह रे ॥प्री॥ पांच रतन एमां हे रे, गुण सांजल तुं तेह रे ॥४॥प्री० ॥ नूदेवा धिष्टित रे, पूजी मागे पास रे ।। प्री०॥ पालक चोलां कनकनारे, विविध नाजन दे खास रे ॥५॥ ।प्रीत०॥ शयनासन प्रादिक नलारे, मग गोधूम सुशालि रे ॥मी०॥ नूषण मणिकंचन तणां रे, प्रगट हुवे ततकाल रे॥६॥प्री०॥नीररतन नन्न मृकीय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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