________________
( १७ )
धर नर राजवी, सेवा करशे तास लाल रे ॥ १३ ॥ || कौ० ॥ वयण सुणीने तेहनां, खेद लह्यो भूपाल लाल रे ॥ कदे जिनदर्ष किश्यूँ हुश्ये, दादा सातमी ढाल लाल रे || १४ || कौ० || सर्वगाथा || १५२ ॥ ॥ दोहा ॥.
॥ नूचर पुत्री परशे, कन्या देवकुमार ॥ खेचर खूटी गया, एहवो करी विचार || १ || समुइमां दे पर्वत शिखर, कूप मांदे करी द्वार || मोहोटो मदे स रच्यो इहां, कोइ न जाये सार ॥ २ ॥ कन्याने राखी हां, राखी मुज रखबाल ॥ पंचरनन कुमरी न ली, दीघांबे भूपाल ॥३॥ हुं दासी बुं तेहनी, भ्रमर केतु लंकेश ॥ धनधान्यादिक मोकले, कूपवाट सुविशे प ॥ ४ ॥ ग्रामांहे पडस जय, जाली कनक बला य ॥ जतन करी राखी इहां, नूचर केम परलाय ॥ ५॥ ॥ ढाल ग्राठमी ॥ जीहो मिथिला नमरीनो राजियो । ॥ ए देशी ॥
"
|| जीहो एकदिन अपर निमित्तीयो, जीहो पूबे. रा इस तास ॥ जीहो कहेने मुज कन्या तो, जीदो कोण वर थाशे जास || १ || लंकापति पूबे तास विचार | एकली || जी हो पूरवली परै तेरों कहां,
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org