Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 6
________________ ॥एक०॥ कुमर पयंपे रे सुगो माहारावजी रे, एवं पियु महिषीनुं दूध ॥ मंदगति थ रे तेणे ए कि शोरनी रे, नहीं गति चंचल शुझ॥१०॥क०॥पय महिषीर्नु रे पाये वायडुं रे, वायें गति नारे होय ॥ तुं केम जाणे रे वत्स राजा कहे रे, ज्ञानी चतुर डे को य॥ ११॥ क० ॥ अश्वपरीक्षा रे जाणु रायजी रे, उत्तमचरित्र कहे ताम ।। राय कहे रे साचुं ते का रे, लघुवय विद्याधाम ॥ १२ ॥ क ॥ बालपणाथी रे एहनी मा मुश्रे, बालक कांश न खाय ॥ महिषी एह नब्जेरियो रे, ते नाख्यु ते न्याय ॥१३॥ क०॥ गुण देखीने रे नत्तमकुमारना रे, हर्षित भयो रे तूपाल ॥ बीजी पूरी रे अइले एटले रे, कहे जिन हर्ष ए ढाल ॥१५॥क ॥ सर्वगाथा ॥ ४६॥ ॥दोहा॥ . ॥कुमरतणा गुण देखीने,रीज्यो चित्त नरेश ।। रा जकुमर बे ए सही, निकलियो परदेश ॥१॥जोतां ए जुगतो मिल्यो, राजकाज समरन ॥ एहने राज्य देश करी, साधुं हुं परम ॥२॥ सांजल हो तुं शा पुरुष, लश्ये माहारुं राज ॥ हुं दीक्षा लेश्श हवे, सा मजा आतम काज ॥३॥ जाग्य संजोगे मुज नमी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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