Book Title: Vastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ ( ४) धर्मकला आवी नहिं, तो मूरखना राय ॥१॥ अवर सर्व विकला कला, धर्मकला शिरदार ॥ धर्मकला विण मानवी, पशुतणे अवतार ॥२॥रात दिवस धर्मे रमे, नत्तमचरित्र कुमार ।। सुखदायी सहु लो कमें, यश विस्तस्यो अपार ॥३॥ एक दिन मनमां चिंतवे, हुं हवे श्रयो जुवान ॥ बाप तणुं धन नोग, एम तो न लहुं मान ॥ ॥ बापतणुं धन बालप एण, खाता खोट न कां ॥ तरुणपणे जोनोगवे, तो पुरुषातन जाय ॥५॥ सोल वरस वोल्यां पडे, न करे जो असास ॥ बाप तणी आशा करे, धिक जन मारो तास ॥६॥ सिंह सिंचाणो शा पुरुष, न करे परनी श्राश । निज तुज खाटयुं खायें, तो लहिये जश वास ॥ ७ ॥ जण न कहायो जगतमां, बालपणे यशवास ॥ पशु दू ते बापडा, पडिया खावे घास ॥७॥करूं परीक्षा कर्मनी, जो देश विदेश ॥ ख नवेश निशि चालियो, धरतो हरख विशेष ॥ ए॥ ॥ ढाल बीजी ॥ माझं मन मोह्यं रे वप्रानंदशं रे ॥ए देशी॥ ॥कर्म परिक्षा रे करण कुमर चल्यो रे, धरतो म नमा उत्साह । साथै लीधो रे नाग्यसखायीयो रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 72