________________
(५४)
की जो सूची उमास्वामी श्रावकाचार (३०७-३३०) में प्रस्तुत की गई है वे बहुपुष्पीय हैं।
दूध से दही बनाने की प्रक्रिया में भी सूक्ष्म जीव पैदा हो जाते हैं। दूध में रहने वाले लैकटोज और ग्लूकोज तत्त्व ग्लाइकोलिसिस द्वारा पाईरूविक अम्ल बन जाते हैं जिससे लेक्टिक एसिड के कारण दूध में खट्टापन आ जाता है। जैन परम्परा में गर्म दूध में जामन डालने के बाद दही की मर्यादा २४ घण्टे की है। इसके बाद उसमें बैक्ट्रिया पैदा हो जाते हैं। द्विदल की भी यही स्थिति होती है। दही में शक्कर डालने पर उसकी . मर्यादा ४८ मिनट की ही रह जाती हैं मक्खन में भी इसी तरह सूक्ष्म जीवाणु पैदा हो जाते हैं।
इसी तरह आटे की मर्यादा बरसात में तीन दिन, ग्रीष्म में पाँच दिन और शरद में सात दिन मानी जाती है। साधारण प्रासुक जल की मर्यादा छ: घण्टे, पूर्णत: उबले जल की मर्यादा चौबीस घण्टे और सामान्यतः छने हुए जल की मर्यादा अन्तर्मुहूर्त मानी गई है। (व्रत विधान संग्रह पृ० ३१) अचार वगैरह भी पुराना हो जाने पर सूक्ष्म कीड़ों का घर बन जाता है। अत: फरमेन्टेशन जैसी क्रिया होने के पूर्व ही उनका उपयोग कर लेना चाहिए। जैन समाज में यह दोहा आज भी प्रचलित है,
ओला घोरवडा निशिभोजन, बहुबीजा बैंगन सन्धान।। बड़ पीपल, ऊमर कठ-ऊमूर, पाकर फल जो हाये अजान ।। कन्दमूल माटी विष, आमिस, मधु, माखन अरु मदिरा पान। अति तुच्छ तुषार चलित रस, ये जिनमत बाईस बखान।
ये सब फल सूक्ष्म जीवों से भरे रहते हैं। इसलिए जैनधर्म में इनके ख़ाने का निषेध किया गया है। जैनधर्म की आहार संहिता वस्तुत: बड़ी वैज्ञानिक है। मांस भक्षण से होने वाली हानियों को उसने वैज्ञानिक स्तर पर आंकलन किया है और उसकी परिधि को विस्तार देकर पूर्ण शाकाहार पर बल दिया है।
३. मद्यपान ___ मद्यपान भी एक जीवनघाती व्यसन है जो विवेक को समाप्त कर संयमि को नष्ट कर देता है और सारे जीवन को नरक बना देता है। यह एक विचित्र नशा है जो एक बार जीवन में प्रवेश कर गया तो निकलने का नाम नहीं लेता। भांग, अफीम, चरस, गांजा, सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकु, विस्की, ब्राण्डी, रम, ब्राउन सुगर आदि सैकड़ों तरह की नशीली चीजें आज बाजार में उपलब्ध हैं जो व्यक्ति का जीवन बरबाद करने में लगी हैं। तृष्णाओं और इच्छाओं की अनापूर्ति से त्रस्त होकर मानसिक तनाव को भुलाने के लिए मद्यपान आदि जैसी नशीली चीजों का उपयोग एक आम रिवाज- सा