Book Title: Vasnunandi Shravakachar
Author(s): Sunilsagar, Bhagchandra Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 368
________________ (वसुनन्दि-श्रावकाचार (२५२) आचार्य वसुनन्दि) है, तो उसके त्रिभाग उसी आयु के अन्दर पड़ जायेंगे। क्योंकि कर्मभूमियाँ मनुष्यों की जघन्य (कम से कम) आयु अन्तर्मुहूर्त (४८ मिनिट में कुछ समय कम) की है और उत्कृष्ट (अधिक से अधिक) आयु एक लाख कोटि पूर्व की है। अनुराग संतुष्ट मन होता हुआ बोला- यह विषय तो अच्छी तरह समझ में आ गया। लेकिन कई बार लोगों के मुँह से सुना जाता है जैसी गति वैसी मति' इसका अर्थ तो यही हुआ न कि जैसी जिसकी गति होनी होगी, उसकी बुद्धि भी वैसी हो जाएगी। अगर यह बात है, तो फिर हम क्यों धर्म कार्यों में पुरुषार्थ करें। . विराग समझाते हुए बोला- जब तक आयु बन्ध नहीं हुआ है, तब तक ‘मति अनुसार गति' बनती है, आयु बन्ध होने पर गति के अनुसार मति होती है। यदि कुगति में जाना पसन्द न हो तो मति को व्यवस्थित करना आवश्यक है। क्योंकि हो सकता है, आज तक हमारा आयु बन्ध न हुआ हो तो, हम अपनी गति जैसी चाहे वैसी बना सकते हैं। एक बात और ध्यान रखने की है कि आजकल निर्व्यसनी, उच्चवर्गीय स्वस्थ शाकाहारी मनुष्यों की औसत आयु सत्तर-पचहत्तर से लेकर अस्सी-पचासी वर्ष तक होती है। जिसका प्रथम विभाग लगभग पचास से पचपन वर्ष की उम्र में पड़ेगा, जिसमें कि आगामी आयु बन्ध हो सकता है। ___ कदाचित् किसी का आयु बन्ध भी हो गया तो भी निराश होकर बैठने की बजाय धर्म कार्यों में लगकर, स्वाध्याय द्वारा परिणामों को विशुद्ध रखा जाय तो आयु कर्म की स्थिति में उत्कर्षण-अपकर्षण (घटना-बढ़ना) हो सकता है। धर्म कार्यों में किया गया पुरुषार्थ व्यर्थ नहीं जाता, इसका जीवंत उदाहरण हुए राजा श्रेणिक, जिन्होंने कि सातवें नरक की आयु को बांधा था, किन्तु धर्म के प्रभाव से वह आयु घटते-घटते चौरासी हजार वर्ष की रह गई। प्रत्येक प्राणी को अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में सावधान रहना अनिवार्य है। अगर हम सावधानीपूर्वक शुभ प्रवृत्ति करेंगे तो कभी भी खोटी आयु का बन्ध नहीं होगा और असावधानीपूर्वक क्रियाओं के करने से खोटी आयु का बन्ध भी हो सकता है। 'जो अपनी मृत्यु को देखकर जीते हैं अथवा अपने आयकर्मबन्ध को ध्यान में रखकर जीते हैं। वे कभी पापपूर्ण प्रवृत्ति नहीं करते, क्योंकि वह जानते हैं कि जिस समय हमने पाप किया, उसी समय मरण अथवा आयुबन्ध हो गया तो नियम से कुगति का पात्र बनना पड़ेगा। 'जो अपनी मृत्यु को जानकर जीता है, वह कभी भी अनाचार, अत्याचार और भ्रष्टाचार नहीं करता, क्योंकि जीवन के हर पल में उसे मृत्यु ही दिखाई देती है।।२४९।।'

Loading...

Page Navigation
1 ... 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466