Book Title: Vasnunandi Shravakachar
Author(s): Sunilsagar, Bhagchandra Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 430
________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार (३१४) आचार्य वसुनन्दि नष्ट करने में समर्थ हुए हैं। यह किरणें असली रूप में एकमात्र सूर्य प्रकाश में ही होती हैं, रात्रि के प्रकाश में यह किरणें नहीं होती फलस्वरूप विभिन्न प्रकार के कीटाण उत्पन्न हो जाते हैं। सूर्य का प्रकाश विभिन्न गुणों से संयुक्त प्राकृतिक होता है, अत: उसके प्रकाश में भोजन करने से कीटाणुओं के आक्रमण से बचा जा सकता है। जो मनुष्य हमेशा दिन में ही भोजन करते हैं, वे दीर्घजीवी और स्वस्थ होते हैं। वर्तमान में भारत के साथ-साथ अन्य कई देशों में दिवस-भोजन का प्रचार-प्रसार बढ़ रहा है। रात को सूर्य रश्मि के अभाव से छुद्र पतंगा आदि जीव गुप्त स्थान से निकलकर विचरणे लगते हैं वे सब आहारादि वस्तुओं में गिर भी जाते हैं उस आहार को करने से उन जीवों का भी भोजन हो जाता है जिससे हिंसा का दोष एवं मांस भक्षण का दोष लगता है। उन विषाक्त जीवों से अनेक रोग भी उत्पन्न हो जाते हैं। आहार में नँ खाने से जलोदर रोग हो जाता है, मकड़ी खाने से कुष्ठ रोग हो जाता है, मक्खी खा जाने से वमन होता है, केश खाने से स्वर भंग हो जाता है, चींटी खा जाने से पित्त निकल आता है विषभरी छिपकली के विष से आदमी को अनेक रोग हो जाते हैं एवं मरण को भी प्राप्त हो जाता है। रात को सूर्य किरणों के अभाव से पाचन शक्ति मंद हो जाती है जिससे खाया हुआ भोजन ठीक से नहीं पचता है। उससे बदहजमी, गेस्टिक, पेट दर्द, सिर दर्द, आदि रोग हो जाते हैं। इसी प्रकार रात्री भोजन सर्वत्र मांस भक्षण के सदृश हानिकारक होने से त्यजनीय है। सूर्य किरण में अनेक गुण है। विटामिन डी भी है। सर्य किरण से विषाक्त कीट-पतंग संचार नहीं करते हैं वायु वातावरण शुद्ध हो जाता है, पाचन शक्ति बढ़ती है। दिन को वनस्पति अंगार-विश्लेषण के कारण प्राण वायु (आक्सीजन) छोड़ते हैं जिससे दिन को पर्याप्त प्राणवायु मिलती है। दिन में जितना प्रकाश रहता है उतना प्रकाश और स्वास्थ्य कर प्रकाश कोई भी कृत्रिम प्रकाश नहीं हो सकता है और रात को कृत्रिम प्रकाश से कीट-पतंग अधिक संख्या से आकर्षित होकर प्रकाश के स्थान में आते हैं यह आप सबको अवगत है ही। इसी प्रकार अनेक कारणों से रात को भोजन करना धर्मतः एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से भी हानिकारक है। दिवसस्य मुखे चान्ते, मुक्त्वा द्वे द्वे सुधार्मिकैः। घटिके भोजनं कार्य, श्रावकाचार चंचुभिः ।। धर्मात्मा श्रावकों को सबेरे और शाम को आरम्भ और अन्त की दो-दो घड़ी (४८ मिनट) छोड़कर भोजन करना चाहिये। वर्तमान आधुनिक वैज्ञानिक एवं डॉक्टर लोगों ने सिद्ध किया है कि रात्रि में सूर्य किरणों के अभाव से एवं सोने से खाया हुआ भोजन ठीक से पच नहीं पाता है, इसलिये

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