Book Title: Vasnunandi Shravakachar
Author(s): Sunilsagar, Bhagchandra Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 439
________________ वसुनन्दि- श्रावकाचार ३२३ परिशिष्ट कष्ट दूर करने के लिये तूनें बड़ा यत्न किया, औषधि आदि से भरपूर सेवा की। उसी फल से इस जन्म में धनपति सेठ की पुत्री हुई और जो तूनें औषधिदान किया था उसके फल से तुझे सर्वोपरि औषधि प्राप्त हुई कि तेरे स्नान के जल से कठिन से कठिन रोग नष्ट हो जाते हैं। मुनि पर कूड़ा डालने से मुनि को जो कष्ट हुआ था, उससे तुझे इस जन्म में झूठा कलंक लगा। मुनि द्वारा पूर्वजन्म का वृत्तान्त सुनकर वृषभसेना का वैराग्य और भी बढ़ गया, उसने स्वामी से क्षमा माँगकर मुनि द्वारा योगदीक्षा ग्रहण कर ली। जिस प्रकार वृषभसेना ने औषधिदान से सर्वोपरि औषधि प्राप्त की उसी प्रकार सत्पुरुषों को उचित है कि वे रोगियों का सदा उपचार करते रहे। औषध-दान महापुण्य का कारण होता है। ३. कौण्डेश की कथा ( ज्ञानदानफल) में भारत के कुरुमरी नामक गाँव में गोविन्द नाम का ग्वाला रहता था। उसने जंगल वृक्ष की कोटर में जैनधर्म का एक पवित्र ग्रन्थ देखा । वह उसे घर लाया और पूजा करने लगा। एक दिन उस ग्वाले ने ग्रन्थ को पद्मनन्दि नामक मुनि को भेंट कर दिया । गोविन्द ने मृत्यु के बाद कुरुमरी गाँव के चौधरी के यहाँ जन्म ग्रहण किया। इस बालक की सुन्दरता देखकर सबको प्रसन्नता हुई। पूर्वजन्म के पुण्यफल से ही ये सब बातें सुलभ हो गयी। एक दिन इसे पद्मनन्दि मुनि के दर्शन हुए। उन्हें देखते ही इसे जातिस्मरण हो गया। मुनि को नमस्कार कर उसने दीक्षा ग्रहण कर ली। उसके हृदय की पवित्रता बढ़ती गयी। वह शान्ति से मृत्यु प्राप्त कर पुण्योदय से कौण्डेश नामक राजा हुआ। उसकी सुन्दरता और कान्ति को देखकर एक बार चन्द्र को भी लज्जित होना पड़ता था, शत्रु उसके भय से काँपते थे । वह प्रजापालक और दयालु था। इस प्रकार कौण्डेश का समय शान्तिपूर्वक व्यतीत हो रहा था । किन्तु विषय सम्पत्ति को क्षण-क्षण नष्ट होते 'देख उसे वैराग्य उत्पन्न हो गया। उसे घर में रहना दुःखमय जान पड़ा। वह राज्य का अधिकारी अपने पुत्र को बनाकर जिनमन्दिर में गया और वहाँ निर्ग्रन्थगुरु को नमस्कार • कर. दीक्षित हो गया । पूर्वजन्म में कौण्डेश ने शास्त्रदान किया था, उसके फल से वह थोड़े समय में ही श्रुतकेवली हो गया। जिसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। ज्ञानदान तो केवलज्ञान काभी कारण होता है। जिस प्रकार शास्त्रदान से एक ग्वाला श्रुतज्ञानी हुआ, उसी प्रकार सत्पुरुषों को भी दान देकर आत्महित करना चाहिये। जो भव्य जन जिस ज्ञानदान की पूजा, प्रभावना, मान, स्तवन किया करते हैं, वे उत्तम सुख, दीर्घायु आदि का मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं । यह ज्ञानदान की कथा केवलज्ञान प्राप्त करने में सहायक हो, यह मेरी मनोकामना है। ४. सूकर की कथा (अभयदानफल) भारतवर्ष मालवा पवित्र और धनशाली देश है । वहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता

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