________________ मुनि श्री सुनील सागरजी सागर जिलान्तर्गत तिगोड़ा (हीरापुर) नामक ग्राम में जन्में बालक संदीप के माता-पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ श्रेष्ठी श्रीमान् भागचन्द्र जी एवं श्रीमति मुन्नी देवी जैन को। व्यापारवशात् आप अपनी जन्मभूमि छोड़कर भोह जिला के किशुनगंज नामक ग्राम में जा बसे। जहाँ मेधावी बालक का प्राथमिक शिक्षण पूर्ण हआ। उच्चस्तरीय शिक्षा पाने हेतु सागर के श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय भेजा गया। सत्संगति, अध्यात्मज्ञानवशात् शास्त्री एवं बी०काम० परीक्षाओं के मध्य युवा हृदय में वैराग्य का ज्वार आने लगा और वे तीसरी बार विद्यालय छोड़कर, दीक्षार्थ उद्धत हुए किन्तु आचार्यश्री ने आगे और पढ़ने को कहा। अन्तरंगज्ञानी को अब बाह्य ज्ञान से ज्यादा सरोकार नहीं रहा; और विशिष्ट संघर्षों और अवरोधों से जूझते हुए अन्ततः 20.4.97 महावीर जयंती के दिन विजय पा ही ली और आचार्य श्री आदिसागर जी (अंकलीकर) के तृतीय पट्टाधीश तपस्वी सम्राट आचार्य श्री सन्मति सागर जी से बरुआसागर, जिला- झाँसी (उत्तर प्रदेश) में दीक्षित होकर मुनि श्री सुनील सागर जी के नाम से प्रसिद्ध हुए। आप मृदुभाषी, बहुभाषाविज्ञ, उद्भट विद्वान्, उत्कृष्ट साधक, मार्मिक प्रवचनकार और अच्छे साहित्यकार हैं। अब तक आपकी लेखनी से निःसृत प्रमुख कृतियाँ हैंपथिक, धरती के देवता, विश्व का सूर्य, काशी दर्शन, मेरी सम्मेद शिखर यात्रा, इष्टोपदेश, (टीका), चम्पापुर की चाँदनी, भक्ति से मुक्ति, अमरत्व का अमृत, बिना पूंछ का बन्दर (कविता संग्रह), मानवता के आठ सूत्र, आदि।