Book Title: Vasnunandi Shravakachar
Author(s): Sunilsagar, Bhagchandra Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
View full book text
________________
वसुनन्दि-श्रावकाचार
३३३
परिशिष्ट
गाथाङ्क १९७ १०३
१७६
१९१
ग
३१० २८९ २८३
२१ ९८
गाथाङ्क
किं करमि कस्य वच्चमि
किं केण वि दिह्रो हैं २२ | किंचुवसमेण पावस्स १३२ ३११ / गंतूण गुरुसमीवं
| गंतूण य णियगेहं
गुरुपुरओ किदियम्म ३०१ | गोणसमयस्स एए ३१४ | गो-बंभण-महिलाणं ५६ गो-बंभणित्थिघायं २९४ २७९ चउदसमलपरिसुद्धं २०६ चउविहमरूविदव्वं २७० चम्मट्ठि-कीड-उंदुर ११० | चिंतेइ मं किमिच्छइ ७९
छम्मासाउयसेसे
| छुहतण्हाभयदोसो ३१८ | छेयण-भेयण-ताडण
२७
एत्तियपमाणकालं एदे कारणभूदा एदे महाणुभावा एमेव होइ विइओ एयारसठाणठिया एयारस ठाणाई एयारसम्मि ठाणे एयारसेसु पढमं एरिसगुण अट्ठजुयं एवं चउत्थठाणं एवं तइयं ठाणं एवं दंसणसावयएवं पत्तविसेसं एवं पिच्छंता वि हु एवं बहुप्पयारं एवं बहुप्पयारं एवं बहुप्पयारं एवं बहुप्पयारं एवं बारसभेयं .एवं भणिए चित्तूण एवं सोऊण तओ एवं सो गज्जतो
२३१
-११४
२०१
ه
२०४
,
ه
२७३
३०६ ३०९ १३८ १२० १२२ १९९ १४६
२५५
३५
१४७ जइ अद्धवहे कोइ वि १४५ जइ एवं ण रएज्जो
जइ कोवि उसिण णरए जइ देइ तह वि तत्थ | जइ पुण केण वि दीसइ
जइ मे होहिहि मरणं २४३ जइ वा पुव्वम्मि भवे १७८ जह उक्कस्सं तह मज्झिमं १५६ जह उत्तमम्मि खित्ते १९४ | जह ऊसरम्मि खित्ते
| जह मज्जं तह य महू ८८ जह मज्झिमम्मि खित्ते १६६ । जह रुद्धम्मि पवेसे
कच्चोल-कलस-थाला कत्ता सुहासुहाणं कम्हि अपत्तविसेसे कहमवि णिस्सरिऊणं कह वि तओ जइ छुट्टो कंदप्प-किन्भिसासुर काउस्सग्गमि ठिओ कारुय-किराय-चंडाल किकवाय-गिद्ध-वायस
२९०
२४० २४२ ८०
२७६
२४१
४४

Page Navigation
1 ... 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466