Book Title: Vasnunandi Shravakachar
Author(s): Sunilsagar, Bhagchandra Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 435
________________ परिशिष्ट १. श्रीषेणराजा की कथा (आहारदानफल) प्राचीन समय में श्रीषेण राजा ने आहारदान दिया। फलतः वे शान्तिनाथ तीर्थङ्कर हुए। मलय नाम का एक प्रसिद्ध देश था । यहाँ की राजधानी रत्नसंचयपुर के राजा श्रीषेण थे। उनकी उदारता, न्यायप्रियता अत्यन्त प्रसिद्ध थी। उनकी दो रानियाँ थींसिंह नन्दिता और अनन्दिता । दोनों ही विदुषी थी। दोनों के दो पुत्र थे - इन्द्रसेन और उपेन्द्रसेन। इस प्रकार राजा श्रीषेण धन, सम्पत्ति, राज, विभव आदि से सम्पन्न थे । उनकी प्रजापालकता प्रसिद्ध थी । इसी नगर में सात्यकि नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसकी सत्यभामा नाम की एक पुत्री थी । रत्नसंचयपुर के समीप ही एक दूसरा गाँव था । वहाँ धरणीधर नाम का एक अच्छा वैदिक था । उसकी पत्नी अग्निला से दो पुत्र थे इन्द्रभूति और अग्निभूति। उनके यहाँ एक दासीपुत्र रहता था, जिसका नाम कपिल था। जब धरणीधर अपने पुत्रों को वेदाध्ययन कराता तो वह छुपकर सुन लिया करता था । कपिल की बुद्धि तीव्र थी। वह विद्वान् हो गया । धरणीधर को बड़ा आश्चर्य हुआ। एक शूद्र को शिक्षा • देने के कारण जनता में बड़ा असन्तोष फैला। लोगधरणीधर को धमकाने लगे। धरणीधर ने घबड़ाकर कपिल को देश से निकाल दिया। कपिल रास्ते में ब्राह्मण बन गया। वह रत्नसंचयपुर पहुँचा। रूप और विद्या से सम्पन्न था ही, सात्यकि ने ब्राह्मण समझ अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया । कपिल को अनायास स्त्रीरत्न की प्राप्ति हो गयी। वह सुखपूर्वक रहने लगा। राजा ने उसके पाण्डित्य की प्रशंसा सुनकर अपने यहाँ पुराण की कथा सुनाने के लिये नियुक्त कर लिया। एक बार सत्यभामा रजस्वला हुई थी। कपिल 'नें उस समय भी संसर्ग करना चाहा। इस दुराचार को देखकर सत्यभामा को सन्देह हुआ। उसने इस पापी को ब्राह्मण न समझ कर उससे प्रेम करना छोड़ दिया। वह अलग रहकर जीवन बिताने लगी। संयोग से धरणीधर पर ऐसी विपत्ति पड़ी कि वह दरिद्री हो गया। वह कपिल के यहाँ रत्नसंचयपुर गया। यद्यपि अपने पिता को देखकर कपिल को क्रोध ही हुआ फिर भी बड़ा सम्मान किया। उसे भय था कि कहीं मेरे सम्बन्ध में • लोगों को भड़का न दें। कपिल ने सब लोगों से अपने पिता का परिचय कराया। उसने मायाचार इसलिये किया कि उसकी माता का भेद न खुल जाय । धरणीधर दरिद्र तो था ही, उसने धन के लोभ में कपिल को अपना पुत्र मान लेने में कोई आपत्ति न की। एक दिन सत्यभामा ने थोड़ा-सा धन देकर धरणीधर से पूछा - - महाराज आप ब्राह्मण

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