Book Title: Vasnunandi Shravakachar
Author(s): Sunilsagar, Bhagchandra Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 419
________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार (३०३) आचार्य वसुनन्दि में, (एयम्मिगिहे) एक घर में, (पासुगं सलिलं) प्रासुक जल, (जाएज्ज) मांगे, (जं किं पि) जो कुछ भी, (पडियभिक्ख) भिक्षा प्राप्त है (उसे), (सोहिऊण) शोधकर ( जिज्जो) भोजन करे, (जत्तेण) यत्न से, (पत्तं पक्खालिऊण) पात्र को प्रक्षालन कर, (गुरुसयासम्मि) गुरु के पास में, (गच्छिज्जो) जावे। (जई) यदि, (एवं) इस प्रकार, (ण रएज्जो) न रुचे, (तो मुनियों की चर्या के बाद) (काउंरिसगिहम्मि) किसी पुरुष के घर में, (चरियाए) चर्या के लिए, (पविसत्ति) प्रवेश करता है, (एयभिक्खं) एक भिक्षा करता है, (ता) इस प्रकार भिक्षा न मिले तो, (पवित्तिणियमणं) प्रवृत्तिनियमन (उपवास), (कुज्जा) करना चाहिए, (गंतूण गुरुसमीव) गुरु के समीप जाकर, (विहिणा) विधिपूर्वक, (चउव्विहं) चतुर्विध, (पच्चक्खाणं) प्रत्याख्यान, (गहिऊण) ग्रहण कर, (तओ) तदनन्तर, (पयत्तेण) प्रयत्न से, (सव्वं) सभी दोषों की, (आलोचेज्जा) आलोचना करे। अर्थ- प्रथम उत्कृष्ट श्रावक अर्थात् क्षुल्लक बालों का कैंची अथवा उस्तरे से चयन करवाता है अर्थात् मुण्डन करवाता है। मुनि पद का अभ्यास करने के लिए केशलोंच भी करता है, तथा प्रयत्नशील अर्थात् सावधान होकर पीछी आदि कोमल उपकरण से स्थान, आसन, शय्या आदि का प्रतिलेखन अर्थात् संशोधन करता है। पाणिपात्र, थाली अथवा कटोरा आदि भाजन में रखकर दिन में एक-बार बैठकर भोजन करता है। किन्तु माह की दो अष्टमी और दो चतुर्दशी इन चार पर्यों में चतुर्विध आहार को त्याग कर नियम से उपवास करता है। (अशक्यावस्था में आहार भी कर सकता है)। पात्र (कटोरे) को प्रक्षालन (साफ) करके चर्या के लिए श्रावक के घर में प्रवेश करता है और आंगन में ठहरकर 'धर्म-लाभ' कहकर स्वयं ही भिक्षा मांगता है। भिक्षा न मिलने पर अदीनमुख हो वहाँ से शीघ्र निकलकर दूसरे घर में जाता है और मौन से अपने शरीर को दिखलाता है यदि अर्ध-पथ में अर्थात् मार्ग के बीच में ही कोई श्रावक मिले और प्रार्थना करता हुआ कहे कि भोजन कर लीजिए तो पूर्व घर से प्राप्त अपनी भिक्षा को खाकर, शेष अर्थात्- जितना पेट खाली रहे तत्प्रमाण उस श्रावक के अन्न को खावे। यदि कोई भोजन के लिए न कहे तो अपने पेट के पूरण करने के प्रमाण भिक्षा प्राप्त करने तक परिभ्रमण करे, अर्थात् अन्य-अन्य श्रावकों के घर जावे। आवश्यक भिक्षा प्राप्त हो जाने के बाद किसी एक श्रावक के घर जाकर प्रासुक पानी मांगे। और जो भिक्षा प्राप्त हुई हो, उसे शोधकर भोजन करे। भोजन के बाद अपना पात्र और हाथ-मुँह प्रयत्न के साथ साफ करे और गुरु के पास जावे। यदि किसी को इस प्रकार की आहार चर्या अच्छी न लगे, तो वह मुनियों के गोचरी कर जाने के बाद चर्या के लिए प्रवेश करे, अर्थात् एक भिक्षा के नियमवाला उत्कृष्ट श्रावक चर्या के लिए किसी श्रावक जन के घर में जावे और यदि इस प्रकार भिक्षा न मिले, तो उसे प्रवृत्ति-नियमन करना चाहिए अर्थात् फिर किसी के घर न जाकर उपवास का नियम कर लेना चाहिए। पश्चात् गुरु

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