Book Title: Vasnunandi Shravakachar
Author(s): Sunilsagar, Bhagchandra Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 386
________________ (वसुनन्दि-श्रावकाचार (२७०) आचार्य वसुनन्दि भक्तप्रत्याख्यान समाधिमरण के औत्सर्गिक और आपवादिक ऐसे दो भेद अवश्य किये हैं। सम्भवत: उस अपवाद लिंग को ही ग्रन्थकार ने श्रावक के लिये विधेय माना है। हालाँकि मूलाराधनाकार ने विशिष्ट अवस्था में ही अपवाद लिंग का विधान किया है। यथा आवसधे वा अप्पाउग्गे जो वा महड्डिओ हिरिमं। मिच्छजणे सजणे वा तस्स होज्ज अववादियं लिंग।। मूलारा. २/७९।। . इसको स्पष्ट करते हुए पं० आशाधर जी ने भी लिखा है- . .. हीमान्महर्द्धिको यो वा मिथ्यात्वप्रायबान्धवः। सोऽविविक्ते पदं नाग्न्यं शतलिंगोऽपि नार्हति।।सा.ध.८/३७।। अर्थात जो कोई धनवान, महर्द्धिक एवं लज्जावान् हो और उसके कुटम्बी मिथ्यावी हों, तो उसे सल्लेखनाकाल में सर्वथा नग्न न करें। मूलाराधनाकार आदि सभी आचार्यों ने सल्लेखना करने वाले के क्रमश: चारों प्रकार के आहार का त्याग आवश्यक बतलाया है। पर प्रस्तुत ग्रन्थकार उसे तीन प्रकार के आहार-त्याग का ही विधान कर रहे हैं, यह एक दूसरी विशेषता है कि वे गृहस्थ के समाधि-मरण में बतला रहे हैं। ज्ञात होता है कि सल्लेखना करने वाले की व्याधि आदि के कारण शारीरिक निर्बलता को दृष्टि में रखकर ही उन्होंने ऐसा विधान किया है, जिसकी पुष्टि पं० आशाधर जी ने भी की है। यथा व्याध्याद्यपेक्षयाऽम्भो वा समाध्यर्थं विकल्पयेत्। भृशं शक्तिक्षये जह्यादप्यासन्नमृत्युकः । ।सा. ध.८/६५।। अर्थात् व्याधि आदि के कारण क्षपक यदि चारों प्रकार के आहार का त्याग करने और तृषापरिषह सहन करने में असमर्थ हो, तो वह ज़ल को छोड़कर शेष तीन प्रकार के आहार का त्याग करे और जब अपनी मृत्यु निकट जाने तो उसका भी त्याग कर देवे। 'व्याध्याद्यपेक्षया' पद की व्याख्या करते हुए वे लिखते हैं____ 'यदि पैत्तिकी व्याधिर्वा, ग्रीष्मादिः कालो वा, मरुस्थलादिदेशोवा, पैत्तिकी प्रकृतिर्वा, अन्यदप्येवंविधं तृषापरीषहोद्रेकासहन-कारणं वा भवेत्तदा गुर्वनुज्ञया पानीयमुपयोक्ष्येऽहमितिप्रत्याख्यानं प्रतिपद्यतेत्यर्थः।' अर्थात् यदि पैत्तिक व्याधि हो, अथवा ग्रीष्म आदि काल हो, या मरुस्थल आदि शुष्क और गर्म देश हो, या पित्त प्रकृति हो, अथवा इसी प्रकार का अन्य कोई कारण हो, जिससे कि क्षपक प्यास की परिषह न सह सके, तो वह गुरु की आज्ञा से पानी को छोड़कर शेष तीन प्रकार के आहार का त्याग करे।

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