Book Title: Uttaradhyayansutram Part 03
Author(s): Vadivetal, Shantisuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 367
________________ ROSSESS RSS ठिई तेऊणं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ ११३ ॥ असंखकालमुक्कोसा, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई तेऊणं, त कायं तु अमुचओ ॥ ११४ ॥ अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं । विजदंमि सए काए, तेउजीवाण अ-11 तरं ॥११५॥ एएर्सि वन्नओ चेव, गंधओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो॥११६॥ ___ दुविहेत्यादिसूत्राणि नव प्रायः प्राग्वत्, नवरम् 'अङ्गारः' विगतधूमज्वालो दह्यमानेन्धनात्मकः 'मुर्मुरः' भस्ममिश्राग्निकणरूपः 'अग्निः' इहोक्तभेदातिरिक्तो वह्निः 'अर्चिः' मूलप्रतिबद्धा ज्वलनशिखा, दीपशिखेत्यन्ये, 'ज्वाला' छिन्नमूला ज्वलनशिखैवेति सूत्रनवकार्थः ॥ उक्तास्तेजोजीवाः, वायुजीवानाह| दुविहा वाउजीवा य, मुहमा बायरा तहा । पजत्तमपजत्ता, एवमेव दुहा पुणो ॥ ११७ ॥ पायरा जे ७|| है पज्जत्ता, पंचहा ते पकित्तिया। उक्कलियामंडलियाघणगुंजासुद्धवाया य ॥ ११८ ॥ संवगवाए य, णे गहा एवमाअओ। एगविहमणाणत्ता, सुहमा तत्थ वियाहिया ॥११९॥ सुहमा सव्वलोगंमि, लोगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउव्विहं ॥ १२०॥ संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसियावि य। ठिई पडुच साईया, सपज्जवसियाविय ॥१२१॥ तिन्नेव सहस्साई, वासाणुकोसिया भवे। आउठिई वाऊणं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ १२२ ॥ असंखकालमुक्कोसा, अंतोमुहत्तं जहन्नयं । कायठिई वाऊणं, तं कायं तु अमुं RESS Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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