Book Title: Uttaradhyayansutram Part 03
Author(s): Vadivetal, Shantisuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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उत्तराध्य.
बृहद्वत्तिः
॥६९६॥
पंचिंदिया उ जे जीवा, चउब्विहा ते वियाहिया। नेरइय तिरिक्खा य, मणुया देवा य आहिया ॥ १५४॥ जीवाजीव पञ्चेन्द्रियास्तु ये जीवाश्चतुर्विधास्ते व्याख्याताः, तद्यथा-'णेरइय तिरिक्खा यत्ति नैरयिकास्तिर्यञ्चश्च मनुजा
विभक्तिः देवाश्च 'आख्याताः' कथितास्तीर्थकरादिभिरिति सूत्रार्थः ॥ तत्र तावन्नरयिकानाह
नेरइया सत्तविहा, पुढवीसू सत्तसू भवे । रयणाभसकराभा, वालुयाभा य आहिया ॥ १५५ ॥ पंकाभा धूमाभा, तमा तमतमा तहा। इइ नेरइया एए, सत्तहा परिकित्तिया ॥ १५६ ।। लोगस्स एगदेसंमि, ते सव्वे उ वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउब्विहं ॥१५७ ॥ संतई पप्पणाईया, अपजवसियावि य । ठिई पडुच्च साईया, सपञ्जवसियावि य ॥१५८॥ सागरोवममेगं तु, उक्कोसेण वियाहिया । पढमाइ जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया ॥१५९ ॥ तिन्नेव सागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया । दुचाए जहन्नेणं, एगं तू सागरोवमं ॥१६०॥ सत्तेव सागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया। तईयाए जहन्नेणं, तिन्नेव उ सागरोवमा ॥१६१ ॥ दससागरोवमाऊ, उक्कोसेण वियाहिया । चउत्थीइ जहन्नेणं, सत्तेव उ सागरोवमा ॥१६२॥ सत्तरससागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया। पंचमाए जहन्नेणं, दस चेव उ सागरा ॥१६३ ॥ बावीससागराऊ,
: ॥६९६॥ उक्कोसेण वियाहिया । छट्ठीइ जहन्नेणं, सत्तरस सागरोवमा ॥१६४॥ तित्तीससागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया।|| सत्तमाए जहन्नेणं, बावीसं सागरोवमा ॥ १६५ ॥ जा चेव उ आउठिई, नेरइयाणं वियाहिया । सा तेसिं
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