Book Title: Uttaradhyayansutram Part 03
Author(s): Vadivetal, Shantisuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 371
________________ तयः पिपीलिका:-कीटिकाः गुंमी-शतपदी, एवमन्येऽपि यथासम्प्रदायं वाच्याः, एकोनपञ्चाशदहोरात्राण्यायु:|स्थितिरिति सूत्रनवकार्थः ॥ चतुरिन्द्रियवक्तव्यतामाह| चरिंदिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपजत्ता, तेर्सि भेए सणेह मे ॥ १४४ ॥ अंधिया पुत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा। भमरे कीडपयंगे य, ढिंकणे कुंकणे तहा ॥ १४५ ॥ कुकडे सिंगिरी-18 डी य, नंदावत्ते य विच्छिए । डोले भिंगिरिडिओ, विरिली अच्छिवेहए ॥१४६ ॥ अच्छिरे माहले अच्छिरोडए, विचित्ते चित्तपत्तए । ओहिंजलिया जलकारी, यनीया तंबगाइ या ॥१४७॥ इइ चउरिदिया एए, णेगहा एवमायओ। लोगस्स एगदेसंमि, ते सव्वे परिकित्तिया ॥१४८॥ संतई पप्पऽणाईया, अपजवसियावि य। ठिई पडुच साईया, सपजवसियावि य ॥ १४९॥ छच्चेव य मासाऊ, उक्कोसेण वियाहिया। चरिंदिय आउठिई, अंतोमुहत्तं जहन्नयं ॥ १५० ॥ संखिन्नकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । चउरिदियकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ ॥१५१॥ अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजदंमि सए काए, अंतरेयं वियाहियं : ॥१५२॥ एएसिं वन्नओ चेव, गंधओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि, विहाणाइं सहस्ससो ॥ १५३॥ | चउरिदिएत्यादि सूत्रदशकम् , इदमपि तथैव, चतुरिन्द्रियाभिलाप एव विशेषः । एतद्भेदाश्च केचिदप्रतीता एवान्ये तु तत्तद्देशप्रसिद्धितो विशिष्टसम्प्रदायाचाभिधेयाः, तथा षडेव मासानुत्कृष्टैषां स्थितिरिति सूत्रदशकार्थः॥ पञ्चेन्द्रियवक्तव्यतामाह कालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तज अतोमुहुत्तं जहन्नयं । चालिया । चरिंदिय ओ। संठाणादेशमा विजदंमि सए काएयकायठिई, त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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