Book Title: Uttaradhyayansutram Part 03
Author(s): Vadivetal, Shantisuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 383
________________ 'पञ्चधा' पञ्चप्रकाराः 'जोइसिय'त्तिज्योतिष्षु-विमानेषु भवा ज्योतिष्का ज्योतीष्येव वा ज्योतिष्काः, द्विविधा वैमानिकास्तथेति सूत्रार्थः॥ एतानेव च नामग्राहमाह| असुरा नागसुवण्णा, विज्जू अग्गी अ आहिया । दीवोदही दिसा वाया, थणिया भवणवासिणो । ॥२०४ ॥ पिसाय भूया जक्खा य रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा । महोरगा य गंधव्वा अट्ठविहा वाण-| मंतरा ॥ २०५ ॥ चंदा सूरा य नक्खत्ता, गहा तारागणा तहा । दिसाविचारिणो चेव, पंचहा जोइसालया ॥२०६॥ वेमाणिया उ जे देवा, दुविहा ते पकित्तिया । कप्पोवगा य बोद्धव्वा, कप्पाईया तहेव य ॥ २०७॥ कप्पोवगा बारसहा, सोहम्मीसाणगा तहा। सणंकुमारमाहिंदा, बंभलोगा य लंतगा ॥ २०८॥ महासुक्का सहस्सारा, आणया पाणया तहा । आरणा अच्चुया चेव, इइ कप्पोवगा सुरा ॥२०९॥ कप्पाइया उजे देवा, दुविहा ते वियाहिया। गेवि जगाणुत्तरा चेव, गेविजा नवविहा तहिं ॥२१॥हिडिमा हिडिमा चेव, हिटिमा मज्झिमा तहा । हिहिमा उवरिमा चेव, मज्झिमा हिडिमा तहा ॥ २११॥ मज्झिमा मज्झिमा चेव, मज्झिमा उवरिमा तहा । उवरिमाहिडिमा चेव, उवरिमा मज्झिमा तहा ॥२१२॥ उपरिमा उवरिमा चेव, इइ गेविजगा सुरा । विजया वेजयंता य, जयंता अप्पराजिया ॥२१३॥ सव्वट्ठसिद्धगा चेव, पंचहाणुत्तरा सुरा । इइ वेमाणिया एए, णेगहा एवमायओ॥ २१४ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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