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से पकाया गया है, यह शाक बड़ी ही बुद्धिमानी से काटकर बनाया गया है, इस शाक का कड़वापन अच्छी तरह से दूर हो गया है, इन सत्तुओं ने तो सारे ही घी को पी लिया है, इस पदार्थ में तो अब बहुत ही उत्तम रस उत्पन्न हो गया है और यह चावल तो बहुत ही स्वादिष्ट हैं—इस प्रकार के सावद्य शब्दों का भोजन के समय विवेकशील मुनि कभी उच्चारण न करे। इस प्रकार के भाषण से आत्मा में मलिन संस्कारों की उत्पत्ति और राग-द्वेष के भाव पैदा होने के अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रकार के लाभ की संभावना नहीं है, अतः साधु पुरुष इस प्रकार की शब्द-रचना का सर्वथा त्याग कर दे। . . . __यदि साधु को बोलना ही अभीष्ट हो तो इस साधु ने शास्त्रों का बहुत अच्छा मनन किया है, इसके वचन और विज्ञान आदि सद्गुण बहुत ही परिपक्व हैं, यह महात्मा निःसन्देह प्रशंसा के योग्य हैं, क्योंकि इन्होंने स्नेह के बन्धनों को बिल्कुल ही तोड़ दिया है, इसने पंडित-मरण प्राप्त किया है, यह बहुत ही अच्छा किया है और इसकी साधु-चर्या बड़ी ही उज्ज्वल तथा प्रभावपूर्ण है—इस प्रकार के . साधुजनोचित शब्दों का व्यवहार करे ।
दशवैकालिक सूत्र के वृत्तिकार ने उक्त गाथा का इस प्रकार से अर्थ किया है
भोजन करते समय साधु इस प्रकार के सावध वचनों का उच्चारण न करे । यथा—इसने अच्छी सभा की है, सहस्रपाकादि तेल अच्छी रीति से पकाये गए हैं, वन आदि का छेदन अच्छा किया गया है, अच्छा हुआ जो इस दुष्ट का धन हरा गया, वह शत्रु मर गया सो अच्छा हुआ, इसको अपने धन का बहुत गर्व था, सो इस धन के नाश से इसका भी नाश हो गया, यह बहुत अच्छा हुआ, यह कन्या बड़ी ही सुन्दर है, अब इसका यदि किसी योग्य वर से विवाह कर दिया जाए तो बहुत अच्छा हो, क्योंकि वह अब वरने के योग्य है, इत्यादि ।
उक्त प्रकार के सावध वचनों के स्थान में साधु निम्नलिखित निरवद्य-निष्पाप वचनों का प्रयोग करे। यथा—इसने गुरुजनों की अच्छी सेवा की है, इसका ब्रह्मचर्य बहुत ही परिपक्व है, इसने स्नेह का बन्धन तोड़ दिया है, इसने शिष्य के क्रोध को हर लिया है, उसने पंडित-मरण से अच्छी मृत्यु प्राप्त कर ली है। यह अप्रमत्त संयम में पूर्णतया सुनिष्ठित है और इस साधु की क्रिया बहुत ही सुन्दर है इत्यादि।
विनीत और विनयरहित शिष्य को शिक्षा देने में गुरु को जो फल प्राप्त होता है, अब उस के विषय में कहते हैं
रमए पंडिए सासं, हयं भदं व वाहए । बालं सम्मइ सासंतो, गलियस्सं व वाहए ॥ ३७ ॥
रमते पण्डितान् शासन् हयं भद्रमिव वाहकः ।
बालं श्राम्यति शासन् गलिताश्वमिव वाहकः || ३७ ॥ पदार्थान्वय :-पंडिए—पंडितो को, सासं—शिक्षित करता हुआ गुरु, रमए—आनन्दित होता है,
श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 92 / विणयसुयं पढमं अज्झयणं