Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 474
________________ समक्ष अपने आपको असमर्थ बताया है। यद्यपि यह आत्मा कर्म करने में स्वतन्त्र माना गया है, तथापि जिस समय निकाचित—अवश्य-भोक्तव्य कर्मों का उदय होता है, उस समय यह जीव परवश हो जाता है। इसलिए उसके अन्तःकरण पर साधु पुरुषों के सदुपदेश का भी पूर्ण प्रभाव नहीं पड़ पाता। चक्रवर्ती के इस कथन को सुनकर अब मुनि फिर कहते हैं अच्चेइ कालो तूरंति राइओ, न यावि भोगा पुरिसाण णिच्चा । उविच्च भोगा पुरिसं चयंति, दुमं जहा खीणफलं व पक्खी ॥ ३१ ॥ अत्येति कालस्त्वरन्ते रात्रयः, न चापि भोगाः पुरुषाणां नित्याः । उपेत्य भोगाः पुरुषं त्यजन्ति, द्रुमं यथा क्षीणफलमिव पक्षिणः ॥ ३१ ॥ पदार्थान्वयः-अच्चेइ कालो-काल का अतिक्रम हो रहा है, राइओ-रात्रियां, तूरंति—शीघ्र जा रही हैं, न यावि—नहीं है, भोगा—भोग, पुरिसाण–पुरुषों के, णिच्चा—नित्य, उविच्च-अपनी इच्छा के अनुसार प्राप्त होकर, भोगा—भोग, पुरिसं—पुरुष को, चयंति—छोड़ जाते हैं, जहा—जैसे, खीणफलं-फल-रहित, दुमं—द्रुम-वृक्ष को, पक्खी—पक्षी, व—सादृश्य अर्थ में है। ___मूलार्थ काल का अतिक्रम हो रहा है, रात्रियां शीघ्रता से जा रही हैं। पुरुषों के भोग नित्य नहीं हैं, अपितु भोग अपनी इच्छा के अनुसार पुरुष को छोड़ जाते हैं, जैसे कि फल-रहित वृक्ष को पक्षी छोड़ जाते हैं। . ___टीका–चित्त मुनि कहते हैं कि हे राजन्! काल का अतिक्रम हो रहा है, रात और दिन बड़े वेग से चले जा रहे हैं। पुरुषों के भोग भी नित्य नहीं हैं और वे भोग भोगी व्यक्तियों की इच्छानुसार नहीं रहते, अपितु अपनी इच्छा के अनुसार वे पुरुष को छोड़कर चले जाते हैं, जैसे फल हीन वृक्ष को पक्षीगण छोड़कर चले जाते हैं। . इस गाथा में यह बताया गया है कि केवल जीवन ही अनित्य नहीं, किन्तु काम-भोग भी अनित्य हैं। अंनित्य होने पर भी वे पुरुष के स्वाधीन नहीं, किन्तु अपनी इच्छानुसार वे जब चाहा भोगासक्त जनों को छोड़कर चले जाते हैं। जैसे कि फलों से रहित हो जाने वाले वृक्ष को उसकी इच्छा के विरुद्ध ही पक्षीगण छोड़कर उड़ जाते हैं। इसलिए इन विनश्वर पदार्थों की मोह-ममता का त्याग कर धर्म-कार्यों के अनुष्ठान में प्रवृत्त होना चाहिए। यह भी स्मरण रहे कि यहां पर फल के समान पुण्य हैं और फल-शून्य वृक्ष के समान श्री-हीन भोगासक्त जन हैं, एवं पक्षीगण के समान काम-भोगादि विषय हैं। सो जब इस जीव का पुण्यरूप फल क्षीण हो जाता है, तब काम-भोग रूप पक्षी जीवरूपी वृक्ष को छोड़ जाते हैं, अतः धर्म का आचरण करना ही अधिक श्रेय देने वाला है। ___ अस्तु, यदि तुम काम-भोगादि पदार्थों का त्याग नहीं कर सकते तो तुमको आर्य-कर्म तो अवश्य करने चाहिएं, सो अब उन कार्यों को ही फल-सहित बताते हैं श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 471 / चित्तसम्भूइज्जं तेरहमं अज्झयणं ।

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