Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 445
________________ हिंसात्मक बताया है वैसे यह नहीं बताया कि आप लोग इस यज्ञ में अज, अश्व आदि पशुओं का वध , करते हो, इसलिए आपका यह यज्ञ हिंसात्मक है। इससे प्रतीत होता है कि उस समय पशुवध की प्रवृत्ति नहीं थी और यदि थी भी तो उस समय तक वह समाप्त-प्राय हो चुकी थी। ____ वास्तव में पशु-वध की प्रथा के समर्थक मांसलोलुपी जीव ही प्रतीत होते हैं, ऐसे ही लोगों के कुत्सित आचरण से पवित्र यज्ञ शब्द भी लांछित हो रहा है, वस्तुतः 'यज्' धातु से निष्पन्न होने वाला यज्ञ शब्द तो देव-पूजा, दान और संगतिकरण आदि अर्थों में ही व्यवहत होता है, अतः विचारशील व्यक्तियों को हिंसात्मक यज्ञों का अनुष्ठान नहीं करना चाहिए, सच्चा यज्ञ तो वही है जिसमें दान की प्रवृत्ति हो, गुरुदेवों एवं बड़ों का सन्मान हो और साधु पुरुषों का सत्संग हो। . अब ब्राह्मणों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उक्त मुनि अनुक्रम से उत्तर देते हैं, यथा तवो जोई जीवो जोइठाणं, जोगा सुया सरीरं कारिसंगं । कम्मेहा संजमजोगसंती, होमं हुणामि इसिणं पसत्थं ॥ ४४ ॥ तपो ज्योतिर्जीवो ज्योति-स्थानं, योगाः सुवाः शरीरं करीषाङ्गम् । कर्मेधाः संयम-योगाः शान्तिः, होमेन जुहोम्यृषीणां प्रशस्तेन || ४४ ॥ पदार्थान्वयः–तवो जोई तप रूप अग्नि है, जीवो—जीव, जोइठाणं—अग्नि का स्थान है, जोगा—मन, वचन और कायरूप योग, सुया-सुवा हैं, सरीरं—शरीर, कारिसंगं—करीषांग है, कम्म—कर्म, एहा—इंधन है, संजमजोग–संयम-व्यापार, संती—शान्ति-पाठ है, होमं होम से- : चारित्र-यज्ञ से, हुणामि—हवन करता हूं जो, इसिणं—ऋषियों के लिए, पसत्थं—प्रशस्त है। ___ मूलार्थ तप रूप अग्नि है, जीव ही अग्नि का स्थान है, तीनों योग युवा हैं, शरीर करीषांग है, कर्म ईंधन हैं और संयम-व्यापार शान्तिपाठ है, इस प्रकार के होम से अर्थात् चारित्ररूप यज्ञानुष्ठान से मैं अग्नि को प्रसन्न करता हूं जिसको ऋषियों ने प्रशस्त माना है, अथवा जो ऋषियों के लिए प्रशस्त है। टीका—मुनि ने अहिंसामय आध्यात्मिक यज्ञ के विषय में किए गए ब्राह्मणों के प्रश्नों का . अनुक्रम से जो उत्तर दिया है वह इस प्रकार है प्रश्न—आपके यज्ञ में अग्नि क्या है? उत्तर—तपरूप। प्रश्न—अग्नि-कुण्ड कौन-सा है? उत्तर—जीवात्मा। प्रश्न—अग्नि-कुण्ड में जिसके द्वारा चरु आदि की आहुति दी जाती है, वह स्रुवा कौन-सा है? उत्तर—मन, वचन और कायरूप योग । प्रश्न—यज्ञ की सामग्री कौन-सी है? श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 442 | हरिएसिज्जं बारहं अज्झयणं

Loading...

Page Navigation
1 ... 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490