Book Title: Updesh Mala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ करता है। (किन्तु समर्थ त्यागी का आलंबन लेकर सर्वस्व त्याग में आना) जैसे जंबू कुमार के त्याग को देखकर प्रभव भी त्याग मार्ग को अपनाने वाला बना ।।३७।। दीसंति परमघोरा वि, पवरधम्मप्पभावपडिबुद्धा । जह सो चिलाइपुत्तो, पडिबुद्धो सुंसुमाणाए ॥३८॥ अत्यंत भयंकर आचरण करने वाले भी अरिहंत कथित श्रेष्ठ धर्म के महात्म्य से बोधित बने दिखायी देते हैं। जैसे सुसुमा के दृष्टांत में चारण मुनि के धर्म और धर्म वचन को प्रासकर वह पापी चिलाती पुत्र प्रतिबोधित हुआ ।।३८।। पुफियफलिए तह पिउघरंमि, तण्हाछुहासमणुबद्धा । ढंढेण तहा विसढा, विसढा जह सफलया जाया ॥३९॥ पिता कृष्ण का घर खान-पानादि भोग साधनों से भरपुर और भोग़ विलास से पूर्ण होने पर भी महात्मा ढंढण ने क्षुधापिपासादि परिषह की ऐसी तितिक्षा की. ऊन परिषहों का ऐसा सत्कार किया कि वे सत्कारित परीषह. केवलज्ञान दाता बनें ।।३९।। . आहारेसु सुहेसु अ, रम्मावसहेसु काणणेसु च । साहूण नाहिगारो, अहिगारो धम्मकज्जेसु ॥४०॥ सुंदर आहार, सुंदर सुख, सुंदर स्थान, सुंदर उद्यान और सुंदर वस्त्र पात्रादि में आसक्त होने का अधिकार साधु को नहीं है। मात्र तप-स्वाध्याय साध्वाचार आदि धर्मकार्यों में ही उसका अधिकार है ।।४०।। । साहू कंतारमहाभएसु, अवि जणवए वि मुइअम्मि । अवि ते सरीरपीडं, सहति न लहं(य)ति य विरुद्ध॥४१॥ साधु अटवी या महाभय में हो तो भी वे अनेषणीय आहारादि न लेकर शरीर के कष्ट को सहन कर लेते हैं। किंतु मार्ग-विरुद्ध लेते नहीं, अटवी में भी ग्राम वास के समान निर्भय रहते हैं [शरीर पीड़ा सहकर मानसिकपीड़ा-असमाधि में यतना पूर्वक ग्रहण करे ऐसा सूचित किया ।।४१।। जंतेहिं पीलियावि हु, खंदगसीसा न चेव परिकुविया । विइयपरमत्थसारा, खमंति जे पंडिया हुंति ॥४२॥ . यंत्र में पीले जाने की पीड़ा प्राप्त हो जाने पर भी स्कंधक सूरि के ५०० शिष्य क्रोधित नहीं हुए। पंडितजन परमार्थ तत्त्व के सार को जानते थे। अतः श्री उपदेशमाला

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128