Book Title: Updesh Mala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 65
________________ में है ऐसा किर=किल=आप्त पुरुष कहते हैं ।।२८९।। आसन्नकालभवसिद्धियस्स, जीवस्स लक्खणं इणमो । विसयसुहेसु न रज्जड़, सव्वत्थामेसु उज्जमइ ॥२९०॥ ...! अल्पावधि में मोक्ष पद पाने वाले का यह लक्षण है कि वह विषय सुखों में आसक्त नहीं होता और मोक्ष साधक स्थानों में उद्यम करता है। (विशिष्ट संघयण बिना धर्म कैसे करे! ऐसा बचाव नहीं करना क्योंकि-) . ।।२९०।। हुज्ज व न व देहबलं, धिइमइसत्तेण जड़ न उज्जमसि। अच्छिहसि चिरं कालं, बलं च कालं च सोंअंतो २.९१॥ शारीरिक शक्ति हो या न हो परंतु 'धृति' =मनःप्रणिधान, 'मति' =बुद्धि और सत्त्व-चित्त स्थिरता से जो तूं धर्म में उद्यम नहीं करेगा, तूं दीर्घकाल तक शरीर बल और दुःषम काल का शोक ही करता रहेगा। (ध्यान रखनाशोक से रक्षण नहीं होगा परंतु दीनता की वृद्धि होगी। अतः जो शक्ति प्राप्त है उससे शक्य धर्म का उद्यमकर उसे सफल बनाना) ।।२९१।। । लद्धेल्लयं च बोहिं, अकरितोऽणागयं च पत्थितो । अन्नं दाई बोहिं, लब्मिहिसि कयरेण मुल्लेण? ॥२९२॥ . ('भवांतर में जैन धर्म और साधन प्राप्तकर धर्म करूंगा' यह विचार अयोग्य है क्योंकि) वर्तमान में प्राप्त बोधि जिन धर्म की प्राप्ति को सदनुष्ठान द्वारा सफल नहीं करता और भविष्य के लिए बोधि की याचना करता है तो हे मूर्ख! उस बोधि को तूं कौन से मूल्य से प्राप्त करेगा? (बोधिलाभ को सदनुष्ठान से सिंचन करने से शुभ संस्कार उत्पन्न होते हैं और वे संस्कार भवांतर में बोधिलाभ के मूल्य रूप में होते हैं। वैसे संस्कार के बिना बोधि कैसे प्राप्त करेगा?) ।।२९२।। संघयणकालबलदूसमारुयालंबणाई चित्तूणं । सव्वं चिय नियमधुरं, निरुज्जमाओ पमुच्वंति ॥२९३॥ प्रमादी जीव कहते हैं क्या करे? संघयण नहीं है, पांचवाँ आरा है। धैर्य न होने से मानसिक बल नहीं है। भगवंत ने ही कहा है विषम गिरते काल में धैर्य विषम है (या दुःषम आरा कठिन है हम क्या करें? हम राग से भरे हुए है आदि झूठे) आलंबन लेकर निरुद्यमी शक्य होते हुए भी संयम भार को सर्वथा छोड़ देते हैं ।।२९३।। - श्री उपदेशमाला 601

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