________________
लाभ होता नहीं वैसे सुगति-मोक्ष भी नहीं होता और परलोक में सुदेवत्वादि नहीं मिलते ।।४९३।।
कंचणमणिसोवाणं, थंभसहस्सुसिअं सुवण्णतलं । जो कारिज्ज जिणहरं, तओऽवि तवसंजमो अहिओ ॥४९४॥
भावपूजा का माहात्म्य कैसा? तो कहा कि-चंद्रकांतादि मणि जड़ित सुवर्ण के पगथिये युक्त एक हजार स्तंभ युक्त अतीव विस्तृत और स्वर्ण के फरस बिठाये हुए ऐसा जिनमंदिर बनावै, उससे भी तपप्रधान संयम उच्च है। क्योंकि उससे ही मोक्ष है। इस कारण भावपूजा रूप संयम का ही प्रयत्न करना, उसमें प्रमाद न करना। प्रमाद करने से महा अनर्थ होता है। जैसे।।४९४।।
निब्बीए दुमिक्खे, रण्णा दीवंतराओ अन्नाओ । .... आणेऊणं बीअं, इह दिन्नं कासवजणस्स ॥४९५॥
'निर्बीज' =जहाँ बोने के लिए भी धान्य नहीं ऐसे दुष्काल के समय में किसी राजा ने दूसरे द्वीप में से बीज मंगाकर किसानों को
बीज बोने के लिए दिया ।।४९५।। ... केहि वि सब्बं खइयं, पइन्नमन्नेहि सव्वमद्धं च ।
. वृत्तुग्गयं च केइ, खित्ते खुटुंति संतत्था ॥४९६॥
. .उसमें कितने ही किसानों ने तो वह बीज सब खा लीया। दूसरों ने आधा बीज खाया और आधा बोया और दूसरों ने बोया और वह उगा भी कितनेक लोग राजा से छूपाकर घर ले जाने के लिए खेत में ही गाड़ देते हैं। बाद में राजा के खयाल में आने पर अरे! अब हम पकड़े जायेंगे ऐसे भय से 'संत्रस्ताः' =भयभीत हो गये व्याकुलता से उनकी आंखे फट गयी और राजा के हुकम से सिपाहीयों द्वारा पकड़े जाने पर अत्यंत कष्ट से दुःखी हुए
१४९६।।
. राया जिणवरचंदो, निब्बीयं धम्मविरहिओ कालो । . . खिताई कम्मभूमी, कासववग्गो य चत्तारि ॥४९७॥ .... अस्संजएहिं सव्वं, खइयं अद्धं च देसविरएहिं ।
साहुहिं धम्मबीअं, उत्तं नीअं च निप्फतिं ॥४९८॥ .
उपरोक्त दृष्टांत का उपनय बताते है। राजा के सदृश यहाँ जिनेश्वर है निर्बिज काल समान धर्म रहित काल, क्षेत्र के समान कर्मभूमि, किसान वर्ग
.
.
107
श्री उपदेशमाला