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मूलग कुदंडगादामगाणिओ, चूलघंटिआओ य । पिंडेइ अपरितंतो, चउप्पया नत्थ य पसूवि ॥४४६॥
जैसे अविवेकी मानव पास में एक बकरी जैसा चोपगा पशु भी नहीं है फिर भी पशु को बांधने का खूटा, चलाने की दंडी, नाथने की लगाम, गले में बांधने की घंटी आदि सामग्री सतत इकट्ठी करता है ।।४४६।।
तह वत्थपायदंडग-उवगरणे, जयणकज्जमुज्जुत्तो । जस्सडट्टाए किलिस्सइ, तं चिय मूढो न वि करेइ ॥४४७॥
उसी प्रकार मूढ़ जयणा के कार्य के लिए सज्ज वस्त्र, पात्र, दंडादि उपकरण सतत इकट्ठा करता है परंतु इकट्ठे करने का क्लेश जिसके लिए करता है वह संयम रक्षा, संयम यतना ही वह नहीं करता। (तो फिर ऐसों को तीर्थकर परमात्मा क्यों नहीं रोकते?) ।।४४७।।
अरिहंतो भगवंतो, अहियं व हियं व नवि इहं किंचि ।
वारंति कारयति. य, पित्तण जणं बला हत्थे ॥४४८॥ ___ अरिहंत भगवंत भी मानव को बलात्कार से हाथ पकड़कर किंचित् मात्र भी अहित से नहीं रोकते या हित नहीं करवाते। (वा शब्द से उपेक्षणीय पदार्थ की उपेक्षा करवाते नहीं) ।।४४८।।
उवएसं पुणं तं दिति, जेण चरिएण कित्तिनिलयाणं । ..: देवाणवि हुँति पहू, किमंगपुण मणुअमित्ताणं ॥४४९॥
। फिर भी भगवंत ऐसा उपदेश देते हैं कि जिसकी आचरणाकर वह कीर्ति के आश्रयभूत देवताओं का भी स्वामी बनता है, तो फिर मनुष्य मात्र का राजा बनें उसमें तो पूछना ही क्या? ।।४४९।।। ... . वरमउडकिरीडधरो, चिंचइओ चवलकुंडलाहरणो ।
सक्को हिओवएसा, एरावणयाहणो, जाओ ॥४५०॥ ..- (हितोपदेश अवश्य सर्व कल्याण साधक है जैसे कार्तिक शेठ-) हितोपदेश आचरणा में लाने से उच्चरत्नमय श्रेष्ठ अग्रभाव से शोभित मुकुट को धारण करने वाला बाजुबंधादि से शोभित 'चपल' तेज प्रसारक कुंडल के
आभूषण युक्त और एरावण हाथी के वाहन युक्त शक्रेन्द्र बना ।।४५० ।। ... रयणुज्जलाई जाई, बत्तीसविमाणसयसहस्साई । - वज्जहरेण वराई, हिओवएसेण लडाई ॥४५१॥ .... इस वज्रधर इन्द्र ने जो इन्द्रनिलादि रत्नों से चमकते ३२ लाख श्रेष्ठ विमानों का आधिपत्य प्राप्त किया वह हितोपदेश के आचरण से ही ।।४५१।।
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श्री उपदेशमाला