Book Title: Updesh Mala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 38
________________ और चोयणा मृदुकठोर वचन से प्रेरणा) होती है और गुरुजन की आधीनता रहती है ।।१५५।। ___ इक्कस्स कओ धम्मो, सच्छंदगई मइपयारस्स? । . किं वा करेइ इक्को ?, परिहरउ कहं अकज्जं या?॥१५६॥ - (ऐसे कष्ट दायक गच्छवास से तो अकेले विचरना अच्छा? ऐसी विचार धारा वाले को कहा कि-नहीं, क्योंकि) एकाकी रहने से स्वेच्छा से बाह्य प्रवृत्ति और आपमति का ही प्रचार रहने से उसको धर्म कहाँ से हो? वैसे एकाकी क्या कर्तव्य बजायगा? और वह अकृत्य का त्याग भी क्या करेगा? ।।१५६।। कत्तो सुत्तत्थागम-पडिपुच्छणचोयणा, य इक्कस? । विणओ व्यावच्चं, आराहणया य मरणंते ॥१५॥ और (गुरुनिश्रा रहित) अकेला सूत्रार्थ की प्राप्ति किससे करें? (संशय) किससे पूछे? तर्क का समाधान किससे प्राप्त करें? विनय किसका करें? वैयावच्च किसकी करे? और मृत्यु के समय निर्यामणा किससे प्राप्त करें? ।।१५७।। ...... पिल्लिज्जेसणमिक्को, पइन्नपमयाजणाउ निच्चभयं । काउमणो वि अकज्ज, न तरह काऊण बहुमज्झे ॥१५८॥ एकाकी विहारी. तीनों एसणा का उल्लंघन करेगा, गोचरी दोषित होगी, चारों ओर से आकर्षित स्त्रियों से नित्य भय, (कामोपद्रव और चारित्ररूपी धननाश का भय) गच्छ में रहने से (अकार्य की इच्छा हो जाय तो भी) कर न सकें ।।१५८।। . उच्वारपासवणवंत-पित्तमुच्छाइमोहिओ इक्को । - सद्दवभायणविहत्थो, निखिवइ व कुणइ उड्डाहं ॥१५९॥ ... स्थंडिल, माजु, उल्टी या पित्त के उछाले से अचानक पीड़ा उत्पन्न होने पर गभराहट से शरीर हील उठने से एकाकी साधु हाथ में जलपात्र ले तब गिर पड़े तो संयम विराधना, आत्म विराधना, जल बिना स्थंडिलादि शुद्धि करे तो शासन हीलना हो जाती है ।।१५९।। - एगदिवसेण बहुआ, सुहा य असुहा य जीवपरिणामा । इक्को असुहपरिणओ, चइज्ज आलंबणं लद्धं ॥१६०॥ - (दूसरा यह भी हो सकता है) एक दिन में भी जीव में शुभाशुभ अनेक मानसिक वितर्क उत्पन्न होते हैं। इसमें अगर अकेला है तो संक्लिष्ट अध्यवसाय में चढ़ेगा और तुच्छ आलंबन पाकर संयम का त्याग करेगा श्री उपदेशमाला . इक्का 33

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