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तो उन व्यक्तियों को नमस्कार करेंगे जो हमें कोई नई बात बतायेंगे । जैसे घोड़े के सींग होते हैं, वन्ध्या के भी पुत्र होता है, आकाश में भी फूल हो सकता है | आदि ।
महावीर के विचारों को आज व्यापक रूप से फैलाने की अपेक्षा है । मुझे लगता है आज 2500 वर्ष के बाद महावीर की मूल्यवत्ता पहले से भी अधिक बढ़ गई है । इसका कारण है महावीर ने शाश्वत तथ्य प्रकट किए । जो शाश्वत होता है। उसका मूल्य कभी कम नहीं होता । महावीर के विचार किसी एक वर्ग, जाति या सम्प्रदाय के लिए नहीं, बल्कि प्राणिमात्र के लिए हैं । अधिक से अधिक इन विचारों IT प्रसार हो और मानवीय चेतना इनसे लाभान्वित हो इसी विश्वास के साथ पुनः महावीर के चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ ।
जैन धर्म और अहिंसा
अहिंसा और जीवदया का सिद्धान्त और आचरण जैनधर्म की आधारभूत और मौलिक स्थापनाओं में से एक है । ब्राह्मण एवं बौद्ध धर्म की अपेक्षा यह जैन धर्म के वैशिष्ट्य का अधिक निरूपक है । ब्राह्मण धर्म में शास्त्रीय क्रियाकाण्ड के अन्तर्गत पशुबलि का अवसर है - वैदिक, पौराणिक और तान्त्रिक धर्माचार में, और दर्शन की कुछ शाखाओं में भी इसे स्वीकृति मिली है । बौद्धों में, चाहे वे हीनयान हों अथवा महायान, मांसाहार की अनुमति है, और यह प्रचिलित भी है । किंतु गत 2500 वर्षो से जैनधर्मावलम्बियों ने, तर्कसंगत रहकर, इस विषय में कभी समझौता नहीं किया और अहिंसा के सिद्धांत और आचार का पालन करते रहे; इसके पहले, अत्यन्त प्राचीन काल में चाहे जो भी स्थिति रही हो । प्रतिवादी दृष्टिकोण की बात हम अभी छोड़ दें। आज केवल प्रकृति ही संहारकारी नहीं है वरन मानवता ने भी करुणा के सामान्य भाव को भुला दिया है । वैयक्तिक एवं राष्ट्रीय स्तरों पर सर्वत्र लोग एक दूसरे का गला घोंटने पर उतारू हैं । इस सन्दर्भ में जैनों का यह महान् सिद्धान्त कि सभी प्राणी पवित्र हैं और हम किसी का घात नहीं कर सकते, अपना विशेष मूल्य रखता है । अपकार और रक्तपात से बचने का यह भाव आज हमारे पारस्परिक सम्बन्धों को मृदु बनाने में नवनीत का काम करे और मानव की मानव के प्रति ही नहीं वरन् पशुओं के प्रति भी कठोरता को दूर करे। हम एक छोर पर पहुंच चुके हैं; अब हमें दूसरे छोर की ओर जाना चाहिए ताकि एक मध्यस्थ भाव की उपलब्धि हो। इससे मानवता का कल्याण होगा और हम आत्यांतिक संकटों से बच सकेंगे ।
- सुनीति कुमार चटर्जी
वं. ३ अं. २-३
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