Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 07 Author(s): Surekhashreeji Sadhvi Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 5
________________ वृद्ध कुमारिकाओं की दीक्षा भिन्न-भिन्न नगरों की रहने वाली, जीवन भर अविवाहित रहकर वृद्धावस्था प्राप्त होने पर अनेक श्रेष्ठी कन्याओं ने समयसमय पर दीक्षा ली और तप संयम की आराधना की। पार्श्वनाथ ने चातुर्याम धर्म की स्थापना की। सम्मेत शिखर में निर्वाण का वर्णन किया है। __इन्हीं मानवीय मूल्यों से सुधी पाठकों में एक नये चिन्तन की वृद्धि होगी। प्रस्तुत पुस्तक के सरल, सटीक व प्रभावी हिन्दी भाषा में अनुवाद का कार्य साध्वी डॉ. सुरेखाश्री जी म.सा. द्वारा सम्पन्न किया गया है। आप द्वारा संयमकालीन जीवन में कई ग्रन्थों का लेखन व सम्पादन कार्य किया गया है। आपने डी.लिट की उपाधि राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से प्राप्त की है। आप जैसी विदुषी साध्वी द्वारा इस पुस्तक का अनुवाद कार्य सम्पन्न हुआ उसके लिए हम अत्यन्त आभारी हैं। प्रकाशन से जुड़े सभी सहभागियों को धन्यवाद! अमृत लाल जैन अध्यक्ष, श्री जैन श्वे. नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर, बाड़मेर देवेन्द्रराज मेहता संस्थापक एवं मुख्य संरक्षक प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)Page Navigation
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