Book Title: Tirthankar Varddhaman Author(s): Vidyanandmuni Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti View full book textPage 7
________________ जनरल फरलांग, सुनोतिकुमार चटर्जी और न्यायमूर्ति रांगलेकर आदि विद्वानों के मतानुसार भारत में आर्यों के आने के पूर्व जनधर्म विद्यमान था। पश्चिमीय एवं उत्तरीय मध्य भारत का ऊपरी भाग ईस्वी सन् १५०० से लेकर ८०० वर्ष पूर्व पर्यन्त उन तूरानियों के अधीन था जिनको द्रविड़ कहते हैं। उस ममय उत्तरभारत में एक प्राचीन, अत्यन्त संगठित धर्म प्रचलित था, जिसका दर्शन, आचार एवं तपश्चर्या सुव्यवस्थित थी, वह जैनधर्म था। आर्यों ने यहां के निवासियों को अनार्य कहा और "दोनों यहां एक दूसरे के समीप रहने लगे। आर्यों के कुछ धार्मिक अनुष्ठान और देवी-देवताओं को अनार्य लोगों ने स्वीकार कर लिया । धीरे-धीरे अनार्यों के देवता, धर्मानुष्ठान, दर्शन, तत्वज्ञान और भक्तिवाद आर्यों के मन पर अपनी छाप छोड़ने लगे । अनार्य राजा नथा पुरोहित आर्यभाषा (संस्कृत) ग्रहण करने के माथ ही साथ आर्यभाषी समाज में गृहीत होने लगे।" सर राधाकृष्णन् के अनुसार उपनिषदों का तत्वज्ञान भारत के आदिवासी द्रविड़ों आदि से लिखा गया था। उपनिषद् और जैन तत्वज्ञान में आत्मा, व्यवहार (अविद्या) और निश्चय (विद्या) आदि के बारे में बहुत कुछ साम्य मिलता है । डॉ. हर्मन जैकोवी के मत से भगवान ऋषभदेव जैनधर्म के संस्थापक ऐतिहासिक पुरुष थे । भागवत में उन्हें अष्टम अवतार के रूप में माना गया है । यह सब वैदिक और श्रमण संस्कृति दोनों को भारतीय संस्कृति के व्यापकरूप में आत्मसात कर लेने के उदाहरण हैं । वेदों में ऋषभ, अरिष्टनेमि, वर्षमान आदि तीर्थंकरों का उल्लेख गुणग्राहकना एवं उदारता का द्योतक है। भगवान महावीर वेद और ब्राह्मण-विरोधी थे, यह प्रचार भ्रमपूर्ण है। इसके कोई प्रमाण नहीं मिलते कि उन्होंने वेदों का विरोध किया, बल्कि मम्करी आदि दिगंवर माधुओं का पक्ष न कर इन्द्रभूनि आदि को अपना प्रमुख गणघर बनाया और गुणग्राही बने । वेदों आदि में भी हिमा का विधान अंग्रेज विद्वान् गबर्ट अर्नेस्ट ह्य म आदि द्वाग मंत्रों की हिमापरक व्याख्या करने के कारण हुआ जान पड़ता है। क्योंकि महाभारत के गांतिपर्व अ.६५,९ में लिखा है कि मद्य, मछली, मधु, मांम आदि वंदों में घूतों द्वारा कल्पित किये गये हैं। इसी प्रकार गजा रन्तिदेव के अहिंमक गजाओं में प्रसिद्ध होते हुए भी उमे प्रतिदिन दो हजार गायों और दो हजार पशुओं की हिंमा करने वाला बताया गया है। यह कथन महाभारत वन पर्व अ. २०७-२०८ का है जहां 'बध्येते' का अर्थ वास्तव में यह है कि गायों और पशुओं को बांधकर उनका १ संस्कृति प्रवाह (वैदिक काल के प्रार्य), पृ. ११८. २ एलफिस्टन मोर डा. कीथ की मान्यता है कि प्रायं बाहर से माये इसके पुष्ट प्रमाण नहीं है।Page Navigation
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