Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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बहिन समझदार कहलाती है, पर ० मुंह पर मुख-वस्त्रिका बांध कर भी लड़ाई झगड़ा करने में बहुत तेज है, गालियों
के गीत गाती है, अभिशाप देती है तथा दूसरों की निन्दा एवं मर्म प्रकाश करती
है, फिर भी समझदार कहलाती है! ० केवल बाह्याचार करके श्राविका बन जाती है, पर भीतर में कपट चलता है, फिर . भी समझदार कहलाती है! ० हाथ में निन्दा की माला (नवकरवाली) है तथा रात-दिन दूसरों की बात करती
है फिर भी समझदार कहलाती है! इस प्रकार 'उपदेश री चौपी' में स्थान-स्थान पर सांसारिक सुखों की नश्वरता तथा दुष्कर्मों के परिणामों के हृदयस्पर्शी विवेचन से अध्यात्म की ओर मोड़ने का अभिनन्दनीय प्रयास है।
५. टहुका
टहुका राजस्थानी भाषा में कोयल की 'कुहुक' के अर्थ में प्रयुक्त होता है। मधुर होने के कारण 'कुहुक' की तरफ हर व्यक्ति सहजतया आकृष्ट हो जाता है। उसी आकर्षण-शक्ति की समान-धर्मिता को ध्यान में रखते हुए श्रीमज्जयाचार्य ने इस रचना का नाम 'टहुका' दिया है, ऐसा लगता है।
श्रीमज्जयाचार्य व्यवस्था-कुशल आचार्य थे। उन्होंने अपने जीवन-काल में इस दृष्टि से अनेक प्रयोग किए। उन प्रयोगों को सर्वसाधारण के गले उतारने के लिए आवश्यक था कि उसके संबंध में बार-बार चेतावनी दी जाए। 'टहुका' उसी श्रेणी का एक प्रयोग है। इसमें भोजन, पानी-वजन तथा सेवा आदि के संबंध में की गई व्यवस्थाओं
और संविभाग में निष्ठा पैदा करने के लिए आवश्यक निर्देश (Suggestion) हैं खाली पेट वे अच्छे ढंग से हृदयंगम हो सकते हैं। इसलिए प्रतिदिन भोजन के लिए बैठते समय इसका अनिवार्य रूप से वाचन किया जाता था। यह क्रम काफी दिनों तक चला। बाद में व्यवस्था जम जाने पर बन्द कर दिया गया।
राजस्थानी गद्य में यह 'टहुका' वि० सं० १९११ बै० शुक्ला १० गुरुवार के दिन लिखा गया। इसके साथ कुछ धाराएं १९११ चैत मास की भी जोड़ी गई है।
६. मर्यादा मोच्छव री ढाळां
शीतकाल का समय हमारे धर्मसंघ की भावी नीति-निर्धारण का एक महत्त्वपूर्ण समय होता है। इस अवसर पर दूर-दूर से समागत साधु-साध्वी वृन्द के वार्षिक-विवरण