Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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॥ श्री वीतरागाय नमः ॥
॥ श्री जैनाचार्य - जैनधर्मदिवाकर - पूज्य श्री घासीलालवतिविरचितं दीपिका-निर्युक्त्याख्यया व्याख्यया समलङ्कृतम् ॥
तत्त्वार्थसूत्रम्
मङ्गलाचरणम् - जिनेन्द्रचन्द्रं नतदेववृन्दं विनष्टतन्द्रं समवाप्तभद्रम् । नत्वो विधत्ते नव तत्वसारं तत्त्वार्थसूत्रं मुनिघासीलालः ॥ मूलसूत्रम् - जीवाजीवबंध पुण्णपावासवसंवरणिज्जरा मोक्खा नव तत्ताई ॥सूत्र १ ||
छाया - जीवा - जीव-बन्ध- पुण्य-पापा - SSस्त्रव संवर निर्जरा मोक्षा नवतत्त्वानि सूत्र १ दीपिका - अथाऽहं संसारार्णवं समुत्तितीर्षूणाम् आर्हततत्त्वजिज्ञासूनां भविकजनानां जैनाऽध्यात्मतत्त्वस्वाध्यायार्थं सर्वजैनाऽऽगमसाराणां स्वगवेषणात्मकबुद्ध्या यथाशक्ति संग्रहं कृत्वा तत्त्वार्थसूत्राणि प्राकृतभाषायां नवाध्यायेषु संरब्धवान् कचित् - शब्दश आगमशब्दानामेव संग्रह कृतबानस्मि कचिच्चा-ऽऽगमार्थानां संक्षेपेण संग्रहं विहितवान् क्वचित्पुनरागमे बृहद्रूपेण प्रतिपादितानां विषयाणां सरलतया वर्णनं कृतवान् अस्मीत्येवं रीत्या जैनागमसमन्वयात्मकं तत्त्वार्थ सूत्रस्याऽऽयं तत्त्वार्थटी कानुवाद
मंगलाचरण
'जिनेन्द्रचन्द्र' इत्यादि ।
देवगण जिनके चरणों में नमस्कार करते हैं, जो तन्द्रा से रहित हैं अर्थात् जिनके ज्ञान की अनुपयोग - अवस्था दूर हो गई है— जो सतत उपयोगमय क्षायिक केवलज्ञान से सम्पन्न हैं अथवा मोहजनित प्रमाद से सर्वथा रहित हो गए हैं और जिन्होंने भद्र अर्थात् कल्याण को पूर्ण रूप से प्राप्त कर लिया है, उन जिनेन्द्र भगवान् रूपी चन्द्र को प्रणाम करके मुनि घासीलाल नौ तत्त्वों के वास्तविक स्वरूप को प्रकट करने वाले भव्य तत्त्वार्थसूत्र की रचना करते हैं ॥१॥
दीपिकार्थ - जो संसार-सागर से पार होने के अभिलाषी हैं और उसके लिए अर्हन्त भगवान् द्वारा प्रतिपादित तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक हैं, ऐसे भव्य जनों के स्वाध्याय के हेतु समस्त आगमों के सार का, अपनी गवेषणात्मक बुद्धि से यथाशक्ति संग्रह करके, प्राकृत भाषा में नौ अध्यायों में तत्त्वार्थसूत्र की मैंने रचना की है । यह रचना अपनी बुद्धि से तत्त्वों की नूतन कल्पनाकरके नहीं किन्तु कहीं-कहीं आगमों का शब्दशः संग्रह करके और कहीं-कहीं आगम के अर्थ को संक्षेप करके की है । कहीं-कहीं आगमों में विस्तृत रूप से प्रतिपादित किये
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧