Book Title: Tattvartha Sutra Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 13
________________ * पूर्व कथन जैन दर्शन के सार भूत ग्रन्थों में तत्त्वार्थसूत्र एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह ग्रंथ जैन धर्म की सभी परम्पराओं में मान्य है। भारतीय दर्शन में, ईस्वीसन् के प्रारम्भ में सूत्र रूप के विभिन्न दर्शनों के सूत्र ग्रंथ में निर्मित हुएए उन सूत्र ग्रंथ में जैन दर्शन से सम्बंधी सूत्रग्रंथ ये तत्त्वार्थ सूत्र ही प्रथम ग्रंथ है। यद्यपि यह ग्रंथ दस अध्यायों में विभिक्त है और जैन धर्म दर्शन के सभी पक्षों को अपने में समाहित किये हुए है। इस ग्रंथ कि विशेषता यह है कि यह ग्रंथ अति संक्षिप्त में जैन धर्म दर्शन के सभी पक्षों पर प्रकाश डालता है। भव्य आत्माएँ इस ग्रंथ का अध्ययन करके जहाँ अन्य धर्म दर्शनों का परिचय पाते है वहीं वे इसकी विविध टीकाओं के माध्यम से जैन दर्शन के अति गहराई में पहुँच पाते हैं। ज्ञातव्य है कि इस संक्षिप्त सूत्र ग्रन्थ पर विशालकाय टीका ग्रंथों का निर्माण हुआ है। श्वेताम्बर परम्परा में इसकी प्रथम टीका तत्त्वार्थभाष्य है जो स्वयं उमास्वाति द्वारा रचित है। इसके अतिरिक्त श्वेताम्बर परम्परा में एक विशाल टीका सिद्धसेनगणि की है। इसके अतिरिक्त इस ग्रन्थ पर हरिभद्रसूरि एवं अन्य श्वेताम्बर आचार्यों की टीकाएँ भी मिलती है। दिगम्बर परम्परा में यह ग्रंथ जैन धर्म का आधार भूत ग्रंथ माना गया है। इस पर पूज्यपाद की सर्वार्थसिद्धि नामक टीका लिखी गई थी, इसके अतिरिक्त दिगम्बर परम्परा में अकलक की राजवार्तिक और विद्यानंद की श्लोकवार्तिक टीकाऐं भी उपलब्ध है। इस ग्रंथ के प्रथम अध्याय में जैन ज्ञान मीमांसा एवं प्रमाण मीमांसा का वर्णन है। इसका दूसरा अध्ययन जीव तत्त्व से सम्बंधित है। तीसरा एवं चौथा अध्ययन स्वर्ग और नरक की विवेचना करता है । पाँचवा अध्ययन अजीव तत्त्व एवं इसके प्रकारों एवं कार्यों से संबंधित है। यह ग्रन्थ व्यक्ति को शुभ कर्म की प्रेरणा देते है। इसके अतिरिक्त इसके अग्रीम पाँच अध्ययन मुख्यतः जैन आचार मीमांसा से संबंधित है। जिसमें आश्रव, संवर, बंध, निर्जरा एवं मोक्ष तत्त्व की चर्चा हुई। इस ग्रन्थ में तत्त्वमीमांसा के साथ-साथ जैन आचार पर अधिक जोर दिया गया है। यद्यपि आश्रव, संवर, बंध, निर्जरा और मोक्ष ये सभी अवधारणाएँ, आचार से सम्बंधित है। किन्तु इसमें जैन तत्त्व मीमांसा का अच्छा परिचय मिल जाता है । तत्त्वार्थ सूत्र में जैन धर्म दर्शन के विविध आयाम उपलब्ध होते है उनमें जैन ज्ञान एवं प्रमाण मीमांसा और जैन आचार मीमांसा प्रमुख है। तत्त्वार्थ सूत्र की एक विशेषता यह है कि इसमें जैन धर्म दर्शन के प्राचीनतम रूप में अनेक संकेत उपलब्ध है। और परवर्ति काल में विकसित सूत्रों से उनका प्राथक्रिय भी सम्यग्र प्रकार से xii twww.jaihelloran big

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