________________
तस्मार्थसून निव
तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता आचार्य मुद्रपिच्छ : जीवनवृत्त
* विजयकुमार जैन
नाम की सार्थकता :
भगवान् महावीर की श्रमणश्रुत-परम्परा में उनके मोक्ष जाने के लगभग 500 वर्ष पश्चात् अर्थात् ईसवी प्रथम शताब्दी के आसपास भगवान् महावीर की मुखरित वाणी के प्रस्तोता, आगमग्रन्थकर्त्ता, आद्यसूत्रकार, जैन वाङ्मय के मणिकाञ्चनग्रन्य तत्त्वार्थसूत्र अपर नाम मोक्षशास्त्र के रचयिता श्रुतकेवली स्वरूप गणीन्द्र आचार्य गृद्धपिच्छ को परम प्रभावक आचार्यों की परम्परा में अतिशय विशिष्ट स्थान प्राप्त है। वे संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान् थे ।
आगमग्रन्थों के साथ-साथ समस्त दर्शनग्रन्थों का उन्होंने गम्भीर अध्ययन किया था । सुप्रसिद्ध आधसूत्र ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र उनकी बहुश्रुतता का प्रतीक है। इनका अपर नाम उमास्वामी या उमास्वाति भी प्राप्त होता है। आचार्य वीरसेन ने जीवस्थान के कालानुयोगद्वार में तत्त्वार्थसूत्र और उसके कर्ता गृद्धपिच्छाचार्य के नामोल्लेख के साथ एक सूत्र उद्धृत किया है.
-
तह गृद्धपिच्छारियप्पयासियतच्चत्यसुते वि 'वतनपरिणामक्रियाः परत्वापरत्वे च कालस्य' इति दव्वकालो फ्रूविदो ।'
इस उद्धरण से स्पष्ट है कि तत्त्वार्थसूत्र के रचयिता गृद्धपिच्छाचार्य हैं । इसका समर्थन आचार्य विद्यानन्द के तस्वार्थश्लोकवार्तिक से भी होता है
-
'एतेन गृद्धपिच्छाचार्यपर्यन्तमुनिसूत्रेण व्यभिचारता निरस्ता ।"
यहाँ विद्यानन्द जी ने भी तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता का नाम गृद्धपिच्छाचार्य बतलाया है।
तत्त्वार्थसूत्र के किसी टीकाकार ने भी निम्न पद्य में तत्त्वार्थसूत्र के रचयिता का नाम गृद्धपिच्छाचार्य दिया है
तत्वार्थसूचकर्त्तारं वृद्धपिच्छोपलक्षितम् ।
वन्दे गणीन्द्रसंजातमुमास्वामिमुनीश्वरम् ॥'
१. धवला पु. 5/316
२. स्वार्थश्लोकवार्तिक, पृ.6
३. तस्वार्थसूत्र, प्रशस्ति,
* वर्द्धमान कालोनी, सागर, (07582) 268506
-