Book Title: Tattvartha Sutra Nikash
Author(s): Rakesh Jain, Nihalchand Jain
Publisher: Sakal Digambar Jain Sangh Satna

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Page 301
________________ --245/ वर और वधू के बारे में सूचनायें दीं। दोनों महलों में खुशियों के बाजे बजने लगे । विवाह का मुहूर्त तय होने लगा और शाही विवाह की तैयारियाँ प्रारम्भ हो गई। 1 AVA 1 .! . 'प्रातः काल होने वाला महामस्तकाभिषेक, पूज्य मुनि श्री के प्रवचन और शाम की मंगल आरती अपनी भव्यता और गरिमा के साथ सम्पन्न हुये थे। F # दिनाँक 21-08-04 आज वह दिन था, जिसका इन्तजार लोग बड़ी बेसब्री के साथ कर रहे थे। प्रातः काल से ही लोग पंक्तिबद्ध हो रहे थे। अभी 4 दिनों तक प्रतिदिन 4 कलशों और 2 शान्तिधारा कलशों द्वारा भगवान् नेमिनाथ का महामस्तकाभिषेक हो रहा था। पर आज उपर्युक्त कलशों द्वारा अभिषेक होने के उपरान्त पूर्व आरक्षित कलशों द्वारा सभी धुओं को अभिषेक करने की सुविधा प्रदान की गई थी। 2121 रूपये, 1111 रूपये तथा 555 रूपये श्रद्धापूर्वक प्रदान कर कोई भी जैन बन्धु भगवान् नेमिनाथ का महामस्तकाभिषेक कर सकता था। कार्यकारिणी द्वारा यह भी संकल्प व्यक्त किया गया था कि वांछित राशि के अभाव में एक भी व्यक्ति इस महत् कार्य से वंचित न रहे। लोगों ने इसे अपना परम सौभाग्य माना । मध्याह्न में द्वारिका (डॉ० राजकुमार के निवासस्थान) से बारात जूनागढ़ (श्री विद्यासागर सभागार पुष्करिणी पार्क) के लिये रवाना हुई। लगभग एक किलोमीटर लम्बे ऐतिहासिक जुलूस में हाथी, घोड़े, बैलगाड़ी, सजे हुए रथ और अनेक कारें थीं। सतना के अतिरिक्त उचेहरों और जबलपुर के बैण्ड अपनी आकर्षक धुनें बिखरे रहे थे । बारात निकलने के पूर्व अनायास ही आसमान मेघाच्छत्र हो उठा। काले-काले बादलों ने जल वृष्टि कर सतना शहर की सड़कों को मानो धो दिया। थोड़ी ही देर में मानों अपना कर्त्तव्य पूरा कर वृष्टि रुक गई पर बादलों की शीतल छाँव बनी रही। शोभायात्रा प्रारम्भ हुई। सबसे आगे चल रहे ढोलवादक दूर-दूर तक बारात के आगमन की सूचना प्रसारित करते हुये चल रहे थे। सजे हुये चार अश्वों पर धर्म ध्वजा लिये घुड़सवारों के पीछे गजराज अपनी मस्त चाल से जन-जन आकर्षित कर रहा था। सौधर्मेन्द्र और कुबेर अपनी-अपनी देवियों सहित उस पर विराजमान थे। इनके पीछे श्री दिगम्बर जैन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के लगभग 200 छात्र-छात्रायें अपने हाथों में ध्वज लेकर चल रहे थे। दूर से देखने पर ऐसा लगता मानो एक बडी पचरगी ध्वजा ही चल रही है। नन्हीं-नन्हीं छप्पनकुमारियों के पीछे सुसज्जित वेशभूषा में अष्टकुमारी देवियाँ और उनके पीछे बैण्ड की धुन पर थिरकती हुई इन्द्राणियों ने स्वप्नलोक जैसा दृश्य जीवन्त कर दिया। एक सजी धजी बैलगाड़ी पर अपने-अपने आयुधों सहित बैठे बलराम - श्रीकृष्ण जन-जन के आकर्षण के केन्द्र बने हुये थे। उनके पीछे महाराज समुद्रविजय एक सुसज्जित रथ पर बैठकर नगर निवासियों का अभिवादन स्वीकार करते चल रहे थे। जबलपुर का प्रसिद्ध राम-श्याम बैण्ड इनके पीछे था। जिनकी धुनों पर नृत्य करने को आतुर नवयुवक मण्डल के सदस्य थिरकते हुए चल रहे थे। आखिर नेमिकुमार की बारात जो ठहरी। इन्द्र परिवार के सदस्यों के पीछे राजस्थानी साफों में सुसज्जित समाजबन्धु व सतना शहर के गणमान्य नागरिक गर्व के साथ चल रहे थे। अब बारी थी नेमिकुमार की। एक भव्य और आकर्षक रथ पर बैठे हुये नेमिकुमार का रथ जब पास आता तो आसमान फूलों से ढँक जाता । इनके पीछे-पीछे सजे हुये वाहनों में राजपरिवार के सदस्य चल रहे थे। लगभग 20 कारों में वयोवृद्ध महिलायें व छोटे बच्चे भी बारात का एक हिस्सा बनकर अपनी भागीदारी निभा रहे थे। अन्तिम वाहन में मिष्ठान्न का भण्डार रखा हुआ था। सभी का मुँह मीठा जो कराना था। पूरे यात्रापथ में बारात का दिल खोलकर स्वागत किया गया। महाराजा उग्रसेन का भूमिका अभिनीत करने वाले श्री नरेन्द्र जैन ने अपने परिवार और पूरे मुहल्ले सहित बारात का स्वागत किया। सर्वप्रथम उन्होंने

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