Book Title: Tattvartha Sutra Nikash
Author(s): Rakesh Jain, Nihalchand Jain
Publisher: Sakal Digambar Jain Sangh Satna

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Page 304
________________ सतना ने अपना सहयोग प्रदान किया। जैन समाज सतना के अध्यक्ष श्री कैलाशचन्द जैन ने स्मृतिचिह्न प्रदान कर सम्पूर्ण समाज की ओर से माननीय कुलपति जी का सम्मान किया। अब बारी थी आगत विद्वानों की। एक-एक कर विद्वान् पूज्य मुनि श्री के चरणों में श्रीफल अर्पित करते तत्पश्चात् समाज की ओर से उनका तिलक, केशरिया पट्टी, बैज और विशेष किट प्रदान कर स्वागत किया जाता । सर्वप्रथम श्री प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जी फिरोजाबाद, तत्पश्चात् श्री पं. मूलचन्द जी लुहाडिया, मदनगंज-किशनगढ़, श्री पं. रतनलाल जी बैनाड़ा, आगरा, श्री डॉ. श्रेयांसकुमार जैन, बडौत, श्री पं. शिवचरणलाल जैन, मैनपुरी, श्री प. निर्मल जैन, सतना, श्री डॉ. कमलेशकुमार जैन, वाराणसी, श्री प्राचार्य निहालचन्द जैन, बीना, श्री पं. उमेशचन्द जैन, फिरोजाबाद, श्री सुरेश जैन, आई. ए. एस. भोपाल, थी डॉ. अशोककुमार जैन ग्वालियर, श्री महेन्द्रकुमार जैन, भोपाल, श्री अनूपचन्द जी एडवोकेट, फिरोजाबाद तथा श्रीमती डॉ. नीलम जैन, गुडगाँव ने पूज्य मुनि श्री के श्रीचरणों में श्रीफल अर्पित कर उनका शुभाशीर्वाद प्राप्त किया। संगोष्ठी संयोजक श्री अनूपचन्द जी एडवोकेट फिरोजाबाद ने इस क्रम में सचालन का दायित्व ग्रहण किया और विषय प्रवर्तन के उपरान्त श्रीमती डॉ. नीलम जैन को प्रथम शोध आलेख प्रस्तुत करने का आग्रह किया । श्रीमती डॉ. नीलम जैन ने समय सीमा देखते हुये अपने आलेख के महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रकाश डाला। आयोजन के मुख्य अतिथि श्री डॉ. ए. डी. एन. वाजपेयी का सारगर्भित उद्बोधन भारतीय सस्कृति की विशेषताओं से परिपूर्ण था। उन्होंने पूज्य मुनि श्री के प्रति प्रणाम करते हुये कहा कि - 'यह मेरा सौभाग्य है कि आप सभी ने मुझे सन्त समागम का सुअवसर प्रदान किया । रामायण से पंक्तियों उद्धृत करते हुये उन्होंने कहा कि- भारत की प्रतिष्ठा यहाँ के साधु-सन्तों और उनके आचरण के कारण है, टाटा, बिरला या अम्बानी के कारण नहीं। विश्व मे सम्पत्ति के मामले में उनसे कई गुना बड़े धनकुबेर मौजूद हैं। परम पूज्य मुनिराज श्री 108 प्रमाणसागर जी महाराज ने अपने सारगर्भित प्रवचन में कहा कि- 'केवल भौतिक और तकनीकि विकास ही जीवन का परिपूर्ण विकास नहीं है। इनके साथ-साथ नैतिक, चारित्रिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक विकास भी होना चाहिए। विदेशी जीवन मूल्य तेजी से हावी होते जा रहे है। वे हमें सिर्फ लर्निग और अर्निग की ही शिक्षा देते हैं। लोविंग की नहीं। जीवन जीने की कला ही महत्त्वपूर्ण है । जो इस कला में निष्णात है वे ससार में रहते हुये भी संतरण करने में समर्थ हैं।' कुलपति श्री वाजपेयी जी की आध्यात्मिक विचारधारा की प्रशसा करते हुये पूज्य मुनि श्री ने कहा - 'यदि विद्या केन्द्रों के प्रमुखों के विचार आध्यात्मिक बन जाएं तो उसमें अध्ययनरत छात्रों का न केवल भविष्य बदलेगा अपितु देश का नक्शा ही बदल जायेगा।' श्री कलपति जी ने रीवा विश्वविद्यालय में जैनधर्म के अध्ययन-अध्यापन, शोध कार्य को प्रोत्साहन देने के लिये एक शोध संस्थान की स्थापना की घोषणा की। जिसका उपस्थित जनसमुदाय ने हर्षध्वनि के साथ स्वागत किया। वितीय सत्र दिनांक 04-09-04 मध्याह 1:30 से 3:00 बी सरस्वती भवन सतना सुप्रसिद्ध विद्वान् प्राचार्य श्री नरेन्द्रप्रकाश जैन की अध्यक्षता में द्वितीय सत्र का शुभारम्भ मध्याह्न 1:30 से श्री

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