Book Title: Tattvartha Sutra Nikash
Author(s): Rakesh Jain, Nihalchand Jain
Publisher: Sakal Digambar Jain Sangh Satna

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Page 320
________________ तत्वार्थसूत्र-निक / 264 खजुराहो : पार्श्वनाथ मन्दिर का शिलालेख सतना जिनालय के निर्माण का 125 वाँ वर्ष मनाते समय खजुराहो के विश्वविख्यात पार्श्वनाथ मन्दिर के दरवाजे पर उत्कीर्ण यह शिलालेख हम सभी के कर्त्तव्य का कितना सुन्दर स्मरण कराता है। मन्दिर निर्माताओं की विनम्रता प्रकट करने वाला यह लेख सम्पूर्ण विश्व में बेजोड़ है - ओं संवत 1011 समये । निजकुलधवलोयम दिव्यमूर्तिः स्वसील समदम गुणयुक्त सर्वसत्वानुकम्पी। स्वजन जनित तोषो धांगराजेन मान्यः प्रणमति जिननाथोयं भव्यपाहिल नामा। पाहिलवाटिका 1. चन्द्रवाटिका, 2. लघुचन्द्रवाटिका, 3. संकरवाटिका, 4. पंचाईतलवाटिका, 5. आम्रवाटिका 6. धंगवाडी । पाहिल वंसे तु क्षये क्षीणे अपर वंसो कोपि तिष्ठति । तस्य दासस्य दासोयम् मम दत्ति पालयेत् । महाराज गुरु श्री वासवचन्द्र । वैसाष सुदि सोम दिने । हिन्दी अनुवाद - ओम संवत् 1011 वर्ष में । निजकुल में धवल दिव्यमूर्ति सुशील समदम आदि गुणों से युक्त सब जीवों पर अनुकम्पा करने वाले, धंगराजा द्वारा मान्यता प्राप्त पाहिल नाम का भव्य श्रावक भगवान जिनेन्द्र को प्रणाम करता है । 1. पाहिल वाटिका, 2. चन्द्रवाटिका, 3. लघुचन्द्रवाटिका, 4. शकरवाटिका, 5. पंचाईतलवाटिका, 6. आम्रवाटिका, 7. धंगवाडी (इसमन्दिर को समर्पित हैं ) । पाहिल वंश में जो क्षय और क्षीणता को प्राप्त होने वाला है, दूसरे वंशों में भी कौन स्थायी रहता है। मेरे इस दान की जो पालना करेगा मैं उसके दासों का भी दास रहूँगा। महाराज गुरु श्री वासवचन्द्र । वैसाख सुदी सोमवार । इस लेख में पाहिल श्रेष्ठी द्वारा महाराजा धंग के राज्यकाल में इस जिनालय का निर्माण कराये जाने का उल्लेख है। । इस मन्दिर की पूजा व्यवस्था के लिये श्री पाहिल द्वारा सात वाटिकाओं (उपवनों) का दान भी इस मन्दिर को दिये जाने का इसमें उल्लेख है । मन्दिर निर्माता ने अत्यन्त नम्रतापूर्वक यह भी लिखा है कि इस निरन्तर क्षीयमाण ससार मे जो कोई भी मेरे इस दान की पालना (सुरक्षा) करेगा, मैं अपने आपको उसके दास का भी दास मानता हूँ ।

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