Book Title: Tattvartha Sutra Nikash
Author(s): Rakesh Jain, Nihalchand Jain
Publisher: Sakal Digambar Jain Sangh Satna

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Page 310
________________ तत्वार्थसूत्र-निक / 254 दृढ़ संकल्प किया और देखते-देखते चर्चा आने लगी कि मैं भी शिविरार्थी बनूंगा, मैं भी शिविरार्थी बनूँगा। जहाँ लोगों का मन कम था, देखते-देखते पुरुष-महिलायें, बच्चे-बच्चियाँ सब मिलाकर करीब 200 लोगों ने फार्म भरे और 185-190 लोगों ने इस शिविर में शिविरार्थी बनकर अपने जीवन को धन्य बनाया । शिविरार्थियों की चर्या देखते ही बनती थी सफेद धोती दुपट्टा, एक हाथ में पानी का कैन, दूसरे हाथ में बैग व चटाई, बैग में पूजन की पुस्तकें, सामायिक की पुस्तक, छहढाला और पेन, माला आदि सामग्री। उन्हें देखकर मानो ऐसा लगता था कि कोई बहुत बड़े व्रती हमारे नगर में पधारे हैं। जो बालक-बालिकायें दिन में 10-10 बार अन्न का भोजन करते थे वे नियम संयम से एक बार या दो बार और उपवास करके रहे। दो बार में कोई दूध व जल के अलावा कुछ नहीं लेता था। इन सभी शिविरार्थियों ने संयम की साधना में बड़े ही मनोयोग से निर्वाह करके अपनी आत्मिक शक्ति का परिचय दिया। बाहर से भी करीब 25-30 शिविरार्थी आये थे । प्रत्येक शिविरार्थियों का एक ही लक्ष्य था सयम से रहो, और अपने को पहचानो । प्रत्येक शिविरार्थी सुबह 4 बजे से रात्रि 10 : 30 बजे तक सिर्फ धर्म आराधना में ही लगे रहते थे। इससे बड़ी क्या बात हो सकती है कि किसी भी शिविरार्थी ने 10 दिन अपने परिजनों से बात तक नहीं की। ऐसा सभी को निर्देश था। 17 सितम्बर 2004 को सभी शिविरार्थी रात्रि 8 बजे अपना गृहत्याग कर मंदिर जी के प्रागण स्थित सरस्वती भवन में आ गये थे जहाँ पर उनके रहने सोने आदि की सारी व्यवस्था दिगम्बर जैन समाज सतना ने की थी। सभी भाई-बहिन धोती दुपट्टा एवं पीले धोती में आ गये क्योंकि दूसरे दिन 18 सितम्बर 2004 से सुबह 4 बजे से दिनचर्या शुरू होनी थी। सुबह 4 बजे मुँह हाथ धोना, 4: 15 से प्रार्थना, 4: 30 से नित्यक्रिया, 5: 15 से ध्यान-सामायिक, पूज्यवर मुनि श्री द्वारा। 6:15 से अभिषेक पूजन, 8 : 15 से मुनिवर के साथ जुलूस में प्रवचन के लिये विद्यासागर सभागार जाना, 8 : 30 से मुनिवर के मांगलिक प्रवचन, 9:45 वापिस मन्दिर जी आना। 10:00 बजे से आहार चर्या, 11:30 बजे विश्राम, दोपहर 12:30 से सामायिक, 1 : 30 बजे से छहढाला की कक्षा आदरणीय ब्र. अशोक भैया जी द्वारा, दोपहर 2: 30 बजे से तत्त्वार्थ सूत्र व्याख्या मुनि श्री द्वारा। शाम 4:30 बजे जलपान, 5:30 बजे प्रतिक्रमण, 6 : 30 बजे आचार्य भक्ति, रात्रि 7 बजे से आरती 8 बजे से प्रवचन दशधर्म पर आदरणीय भैया जी द्वारा तथा 9 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम | 10: 30 बजे विश्राम | इस प्रकार की दिनचर्या उन शिवरार्थियों की प्रतिदिन की थी और वह बड़े ही मनोभाव से इस सयम रूपी संस्कारों में गोता लगाते हुये अपना मार्गप्रशस्त कर रहे थे। शिविर का प्रत्येक कार्यक्रम अपने में अद्वितीय था। रात्रि में जब सभी श्रावक मुनिश्री की वैयावृत्ति करते थे वह दृश्य देखते ही बनता था। उनके शरीर को छूते ही व्यक्ति मोह, राग, द्वेष रूप परिणति को भूलने लगता था और कहता था कि धन्य हैं ये गुरु और इनकी चर्या । एक से वस्त्रों में सभी शिविरार्थी ऐसे लगते थे कि यह सब लौकान्तिक देव कहाँ से आ गये। मुनि श्री की सभा में बैठे सभी शिविरार्थी ऐसे लगते थे कि मानो भगवान का समोशरम आया है और इतने गणधर उनकी वाणी को गूथ रहे हैं । बड़े ही उत्साह पूर्वक शिविरार्थी अभिषेक पूजन करते । शाम की भक्ति और मुनिश्री की आरती भी सभी शिविरार्थी बड़े ही मनोभाव से करते थे। शिविर की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि सभी शिविरार्थी रात्रि में दिनभर में अपने हुये कार्यों की समीक्षा और आलोचना कर प्रायश्चित लेते और उनको मुनिश्री दिशा निर्देश देते थे। छोटी-छोटी बातें जिन्हें हम ध्यान नहीं देते मुनिश्री उन बातों को बताते, समझाते, उनका जीवन में क्या अभिप्राय है उससे हमे जाने

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