Book Title: Tattvartha Sutra Nikash
Author(s): Rakesh Jain, Nihalchand Jain
Publisher: Sakal Digambar Jain Sangh Satna

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Page 299
________________ श्री नेमिनाथ महोत्सव सतना बहुत प्राचीन नगर नहीं है। आज जिस स्थान को सतना के रूप में जाना जाता है। संभवत: वहाँ पहिले जंगल हो रहा होगा। रेल्वे लाइन के निर्माण के साथ-साथ बस्ती का बसना प्रारम्भ हुआ। सन् 1872 में रेल्वे स्टेशन बनने के साथ ही रेलगाड़ियों का नियमित चलना प्रारम्भ हुमा । बाहर से आकर बसने वाले जैन, मारवाड़ी, गुजराती, कच्छी आदि लोगों ने इस शहर के विकास में अपना योगदान दिया। सन् 1880 में श्री दिगम्बर जैन मन्दिर का निर्माण हुआ। जिनालय मूलनायक तीर्थंकर श्री 1008 नेमिनाथ स्वामी की बहुत सुन्दर पद्मासन प्रतिमा वेदी क्रमांक एक में विराजमान है। इस प्रतिमा के पादमूल में प्रतिष्ठाकाल माघ सुदी 5 विक्रम सं0 1937 अंकित है। उपर्युक्त तथ्यो के आधार पर मेरे अनुरोध पर श्री दिगम्बर जैन समाज सतना की कार्यकारिणी ने निर्णय लिया कि भगवान् नेमिनाथ के जन्म और तप कल्याणक की तिथि अनुसार 21-08-04 से भगवान् नेमिनाथ के मोक्षकल्याणक आषाढ सुदी अष्टमी सन् 2005 तक पूरे वर्ष को जिनालय स्थापना एवं जिनबिम्ब प्रतिष्ठापना के गौरवशाली 125 वर्ष के रूप में विविध कार्यक्रमों के साथ आयोजित किया जाय । इस महत्वपूर्ण आयोजन के प्रति लोगों में उत्साह और अभिरुचि जाग्रत हो, इसके लिये भगवान् नेमिनाथ के मोक्षकल्याणक दिवस आषाढ सुदी अष्टमी दिनाँक 26-04-04 को विशेष अभिषेक पूजन के साथ महोत्सव का जयघोष/मंगलाचरण मन्दिर जी में हुआ। परम पूज्य मुनिराज श्री 108 प्रमाणसागर जी महाराज के चातुर्मास का सौभाग्य सतना दिगम्बर जैन समाज को प्राप्त हुआ। पूज्य मुनिश्री के आगमन ने आबाल-वृद्ध नर-नारियों को अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान कर दी। दिनॉक 4-07-04 को पूज्य मुनिश्री का वर्षावास योग सतना नगरी मे स्थापित हुआ और इसके साथ ही लोगों के उत्साह में प्रतिदिन अभिवृद्धि होती गई। भगवान् नेमिनाथ के जन्म एव तप कल्याणक दिवस को पंच दिवसीय कार्यक्रम के रूप में मनाने का सुझाव पूज्य मुनि श्री ने दिया । तदनुसार दिनांक 17-08-04 से 21-08-04 तक पचकल्याणकों की सांस्कृतिक झाँकी के साथ-साथ प्रत्येक दिन भगवान् नेमिनाथ के महामस्तकाभिषेक के आयोजन की रूपरेखा निश्चित हुई । दिनॉक 22-08-04 को भगवान पार्श्वनाथ का मोक्ष कल्याणक दिवस होने के कारण दिनॉक 17 से 22 अगस्त तक होने वाले आयोजन को 'नेमिनाथ महोत्सव' का नाम पूज्य मुनिश्री ने दिया। सतना जैन समाज के आग्रह और अनुरोध पर आदरणीय बाल ब्रह्मचारी श्री अशोक भैया जी ने भी वर्षावास योग में सतना में ही रहने का निश्चय कर लिया था। उनके निर्देशन में नेमिनाथ महोत्सव की तैयारियाँ प्रारम्भ हुई । विभिन्न पात्रों की भूमिका अभिनीत करने के लिये योग्य व्यक्तियों को प्रेरणा पूज्य महाराज श्री ने देकर उत्साहित किया। सीमित समय में ही असीमित कार्य करा लेने की क्षमता के धनी आदरणीय भैया जी ने जिनबिम्ब प्रतिष्ठा जैसा वातावरण उत्पन्न कर दिया। दिनांक 14-08-04 शनिवार को श्री नेमिनाथ वेदिका में श्री शान्तिनाथ विधान प्रारम्भ हुआ । दिनांक 15-08-94 को पूजन के उपरान्त नेमिनाथ वेदिका में विराजमान अन्य प्रतिमाओं व यन्त्रों को सम्मानपूर्वक ले जाकर श्री शान्तिनाथ वेदिका में विराजमान किया गया। मध्याह्न में श्री नेमिनाथ जिनबिम्ब के तीनों तरफ संगमरमर की पट्टिकायें लगाकर अभिषेक की व्यवस्थायें बनाई गई। दिनांक 16-08-04 की प्रात: से जाप्य प्रारम्भ हो गया।

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