________________
76 /erenties ver
ए अणुओं से नये डीएम ए अणुओं का संश्लेषण पुनरावृत्ति कहलाता है। डी एन ए पुनरावृत्ति के समय दोनों पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाएँ कुण्डलित होकर अलग हो जाती हैं। प्रथम हुई श्रृंखलाएँ एक-दूसरे की पूरक होती हैं।
जीन रासायनिक रूप से डी एन ए का बना होता है। डी एन ए की कितनी लम्बाई जीन बनाती है इसके लिये बेन्जन ने निम्न शब्द प्रतिपादित किये: 1. सिस्ट्रॉन, 2. रिऑन, 3. क्यूटॉन, 4. कॉम्प्लान, 5. रेप्लीकॉन, 6. ओपरॉन
वह तकनीक जिसमें एक प्रजाति के जीन को दूसरी प्रजाति के डी एन ए में प्रवेश करवाकर पुनर्योजी डी एन ए (Recombinent DNA) प्राप्त किया जाता है, जीन अभियांत्रिकी (Genetic Engineering) तकनीक कहलाती है । इस तकनीक का लक्ष्य व विधि सरल प्रतीत होती है परन्तु वास्तविक रूप में यह अतिसंवेदनशील एवं कठिन कार्य है। इस तकनीक का अध्ययन निम्न प्रकार से किया जा सकता है -
1. आवश्यक जीन की प्राप्ति : यूकेरियोटस की कोशिकाओं के सहस्र जीन्स में से आवश्यक जीन को खोजना व वियुक्त करना जीन अभियांत्रिकी का प्रथम चरण है।
2. जीन वाहम की प्राप्ति: उत्पाद बनाने के लिये चुने हुए जीन को किसी बाहम के साथ बांधना होता है क्योंकि बाहम में अन्य जीवों या आतिथेय (Host) में जाकर अपने डी एन ए को आतिथेय के डी एन ए के साथ जुड़कर या स्वतन्त्र रूपसे संश्लेषण करने की क्षमता होती है।
3. वाहक जीन के साथ आवश्यक जीन को जोड़ना
4. पुनर्योजी डी एन ए आतिथेय कोशिका में निवेशन ।
5. पुनर्योजी डी एन ए अणुओं युक्त कोशिकाओं का चयन व गुणन - वे कोशिकायें जिनमें पुनर्योजी डी एन ए का प्रवेश संभव हो जाता है उनका चयन किया जाता है। चयनित कोशिकाओं का गुणन कर इनकी कई गुणा संख्या प्राप्त कर ली जाती है। इन्हें क्लोन कोशिकाएँ कहते हैं ।
6. आवश्यक उत्पाद की प्राप्ति वांछित जीन आतिथेय कोशिका में अपनी अभिव्यक्ति करता है। उदाहरणत: यदि किसी वैक्टीरिया में किसी विशिष्ट प्रोटीन के लिये जीन निवेशित किया जाता है तब वैक्टीरिया में उसी प्रकार का प्रोटीन संश्लेषित होने लगता है। इसी प्रकार यदि किसी पादप (पौधा) या जन्तु में रोगाणु प्रतिरोधी जीन का निवेशन कराया जाता है तब ऐसी स्थिति में पौधे या जन्तु रोग के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं ।
-
पूर्णशक्तता (Totpotency) - लैंगिक जनन विधि द्वारा वह बीज से पूर्ण पौधे का निर्माण हो सकता है व कायिक जनन विधि में पौधे का छोटा भाग भी पूर्ण पौधे का निर्माण कर सकता है। अर्थात् कोशिका में पुनर्जनित (Regenerate) होने की क्षमता प्राकृतिक रूप से पाई जाती है। प्रत्येक कोशिका में वे सभी जीन्स विद्यमान होते हैं जो सिद्धान्त रूप से पूर्ण पौधे के विकास के लिये आवश्यक होते हैं। सजीवों की प्रत्येक कोशिका में उस जीव के सभी लक्षणों को उत्पन्न करने की क्षमता को "टोटीपोटेन्सी" कहते हैं।
सूत्र के सन्दर्भ बायोटेक्नालॉजी -
तस्वार्थसूत्र के अनेक सूत्रों की व्याख्या करने पर बायोटेक्नालॉजी से सम्बन्धित होने का भान होता है। जैसे कि द्वितीय अध्याय में कहा गया है -
संसारिणस्वरस्थाः ॥ 13 ॥