Book Title: Tattvartha Sutra Nikash
Author(s): Rakesh Jain, Nihalchand Jain
Publisher: Sakal Digambar Jain Sangh Satna

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Page 187
________________ জানা কাহিনী লিৰিক আৰল মঞ্চ খৰলগা। জালালিঙ্গার সাথী শাই তই আল प्राचीन परिभाषा 'आत्मा का विज्ञान' (Science of Soul) कहकर व्याख्यायित नहीं किया जा सकता। अब प्रयोग और निरीक्षण के आधार पर ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। अंग्रेजी में इसे Psychology कहा जाता है जो Psyche और Locas शब्दों से नि:सत हुआ है |Psyche का तात्पर्य है मात्मा और LOAD का तात्पर्य है ज्ञान । अर्थात् जो आत्मा का विज्ञान है वही Psychology है। पर आत्मा का कोई रूप रंग न होने से उसका अध्ययन नहीं किया जा सकता। अत: उसे Scrence of Mind कहा जाने लगा। आज का मनोविज्ञान पशुओं और मनुष्यों के बाह्य व्यवहार को भी सम्मिलित करता है। वह मन के अस्तित्व को ही नहीं मानता, बल्कि उसके स्थान पर स्मृति, विचार, साहचर्य आदि मानसिक वृत्तियों को भी स्वीकार करता है। इन वृत्तियो के अध्ययन के लिए अन्तर्दर्शन, निरीक्षण, प्रयोगात्मक, विकासात्मक आदि विधियों का उपयोग किया जाता है। इसके वैयक्तिक, सामाजिक, रचनात्मक, आपराधिक, शारीरिक आदि अनेक क्षेत्रों का विकास हुआ है। उसमें ईश्वर, आत्मा और भौतिक जगत् ये तीन विषय ही मुख्य रहे है । कर्मवाद और सृष्टिवाद की व्याख्या को भी यहाँ प्रमुखता दी गई है। अब इसे Science of Consciousness कहा जाने लगा। आधुनिक मनोविज्ञान में प्रायोगिक मनोविज्ञान बडी तेजी से बढ़ा । बुट (1979 AD.) टिचनर, जेम्स, एजिल आदि ने प्रयोगशालाएं स्थापित की और सवेदना, सकल्प आदि को विशेष स्थान दिया। फ्रायड का मनोविश्लेषणवाद भी एक क्रान्तिकारी मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त रहा है । इसके बाद ही आधुनिक मनोविज्ञान का द्रुतगति से विकास हुआ है। उसमें विभिन्न सम्प्रदायों का जन्म हुआ है - इन सम्प्रदायों में सरचनावाद, प्रकार्यवाद, व्यवहारवाद, गेस्टाल्डवाद, फ्राइडवाद विशेष प्रचलित हैं। सरचनात्मक मनोविज्ञान के संस्थापक बंट और टिचनर (1867-1927A.D) ने मन और शरीर में समानान्तर सम्बन्ध माना | उनके अनुसार मन की संरचना तीन मानसिक तत्वो के योग से हुई है - संवेदन, भावना और प्रतिमा । इससे चेतना के विभिन्न स्तरों का वर्णन होने लगा । अन्तर्निरीक्षण और आत्मप्रेक्षण का महत्त्व इसमें अधिक है। चेतन के साथ यहाँ अवचेतन मन का भी महत्त्व बढ़ गया। बाद में वाटसन ने व्यबहार और निरीक्षण पर बल दिया। इसका स्वरूप बस्तुनिष्ठ है। इसमें शरीर और मन को अभिन्न माना गया है। इसमें उद्दीपन और अनुकरण तथा पर्यावरण को महत्व दिया गया है । इसके बाद गेस्टोइल्ट सम्प्रदाय ने सामाजिक और बाल मनोविज्ञान के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया। फिर फ्राइड ने अवचेतन मन को अपने अध्ययन का विषय बनाया। इसके बाद जेम्स ने मनोविज्ञान को चेतना का विज्ञान कहा। तदनुसार मन चेतना का प्रवाह है। चेतना ही आत्मा है। वह स्वयं प्रकाशक और पदार्थ का प्रत्यक्ष ज्ञाता है। अब दर्शन और मनोविज्ञान स्वतन्त्र विषय हो चुके हैं। भारतीय मनोविज्ञान भारतीय मनोविज्ञान प्रारम्भ से ही वर्णनात्मक न होकर अनुभवात्मक रहा है। उसके विशेष अध्ययन का विषय यह रहा है कि मन की शक्ति को कैसे बढ़ाया जाये, शारीरिक कार्यो, भावों और आवेगों को कैसे संयमित किया जावे ? वह माला की साश्वतता तथा कर्म के कारण पुनर्जन्म रूप पर्याय परम्परा में भव अमन का विश्लेषण बड़ी सत्ता के साथ पहले से ही करता आया है।

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