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किससे है ? तो उत्तर होगा कि उसकी समाज में स्वीकार्यता कितनी है ? समाज में स्वीकार्यता के लिए देखा जायेगा कि वह कितना योग्य है ? और यह योग्यता व्यक्ति की गुणात्मकता से आती है। आदमी अपनी 'वेल्यू' बढ़ाना चाहता है क्योंकि वह ताकतवर होना चाहता है। अंग्रेजी वेल्यू नियंत्रित नहीं करता किन्तु भारतीय मूल्य नियंत्रित करता है।
___ भारतीय संस्कृति में 'सत्यं शिवं सुन्दरम्' को मूल्य के रूप में आद्य उद्घोष माना जा सकता है । मूल्य वैयक्तिक न होकर वृहत्तर सामाजिक सन्दर्भो को अपने में समाये रहते हैं। मूल्य प्रेरक तो होते ही हैं, साथ ही इच्छित गुणात्मक विकास को भी लक्ष्य बनाते हैं। 'प्लेटो' के अनुसार 'मूल्य' में 'सर्वोच्च शुभ' का विधान होता है। कुछ लोग मूल्यों को परिस्थितिजन्य मानते हैं किन्तु ऐसे मूल्य दीर्घकालीन ऊँचाईयों का स्पर्श नहीं कर पाते । मूल्य तो शुभ, श्रेष्ठ, सर्वोत्तम एवं शुचिता के मानक होते हैं। मूल्य मात्र आचार-नियमों से सम्बन्धित नहीं हैं वे तो सस्कृतिनिष्ठ होते हैं।
भारतीय संस्कृति में पुरुषार्थ को पुनीत लक्ष्य माना गया है जिसका महत्त्वपूर्ण तत्त्व धर्म है। श्रीदेवीप्रसाद गुप्त के अनुसार - "हमारे महाकाव्यों का उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की अर्थात् चतुर्वर्ग फलप्राप्ति माना गया है । इसमें प्रतिपादित शाश्वत जीवनमूल्य भोग, योग और कर्म हैं।'' डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् ने पुरुषार्थ को जीवनमूल्य माना है। वे भारतीय संस्कृति के योग्यतम अनुसन्धाता थे। उनकी दृष्टि में “अपना अस्तित्व बनाये रखना, आत्मा की निर्मलता को बनाये रखना ही जीवन का लक्ष्य है। मानव केवल भौतिक सम्पत्ति और ज्ञानार्जन से ही सन्तुष्ट नहीं रह सकता। उसका ध्येय है आत्म-साक्षात्कार करना।"२
____धर्म के विषय में भारतीय धारणा 'धर्मो रक्षति रक्षित:' की है अर्थात् जो धर्म की रक्षा करता है धर्म उसकी रक्षा करता है।
'मानविकी पारिभाषिक कोश' के अनुसार - "साहित्यकार अपनी कृति में जिन अनुभूतियों की अभिव्यक्ति करता है अथवा जिन मन:स्थितियों को व्यंजित करता है वे साधारण जीवन की अनुभूतियों एवं मनःस्थितियों से श्रेष्ठ एवं अधिक मूल्यवान् हैं, वही श्रेष्ठ अनुभूतियों को मूल्यों के रूप में ग्रहण किया जाता है।''
नील जे. स्मेलसर के अनुसार - 'मूल्य ऐसी वांछनीय साध्य स्थितियों हैं जो मानवीय व्यवहार के लिए पथ-प्रदर्शक का कार्य करती हैं अथवा वे तर्कसंगत साध्यों के ऐसे सर्वाधिक व्यापक विवरण हैं जो सामाजिक क्रियाकलापों का मार्गदर्शन करते हैं।
डॉ. कुमार विमल के अनुसार - 'मूल्य का अर्थ है जीवनदृष्टि या स्थापित वैचारिक इकाई, जिसे हम सक्रिय 'नॉर्म' भी कह सकते हैं।
डॉ. देवराज ने कहा है कि - "मूल्य किसे कहते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर इस दूसरे प्रश्न के उत्तर से सम्बन्धित है कि मनुष्य किन चीजों को मूल्यवान् समझते हैं । अन्ततः मूल्यवान वस्तु वह है जिसकी मनुष्य कामना करता
१.हिन्दी महाकाव्य : सिद्धान्त और मूल्यांकन, देवीप्रसाद गुप्त, पृ. 23 २. पूर्व-पश्चिम - भारतीय जीवन : डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन्, पृ.9 इ.मानविकी पारिभाषिक कोश : सम्पा. डॉ. नगेन्द्र, पृ. 267 ४. नीलबेस्मैलसर बीड ५. कमार विमल मालोचना' (मासिक) अक्टूबर-दिसम्बर, अंक 67, पृ. 64