Book Title: Tattvabhagana
Author(s): Mahavir Prasad Jain
Publisher: Bishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf

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Page 8
________________ जावे तो अनादि का जन्म मरण का रोग मिट जावे । "शुधारम और पंचगुरु जग में शरणा दो।" जितने भी सिद्ध हुए हैं, हो सहे हैं और होंगे, इसी उपाय से हुए हैं। सम्यग्दर्शन की प्राप्ति चारों गतियों में हो सकती है किंतु संयम धारण मात्र मनुष्य पर्याय में ही हो सकता है मत: संयम मुख्य है । सर्वार्थ सिद्धि के देव भी जो निरन्तर ३३ सागर तक उत्कृष्ट धार्मिक चर्चा में हो लगे रहते हैं संयम धारण नहीं करने के कारण मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाते सोचते हैं कब मनुष्य पर्याय पावें, मुनिव्रत धारण करके तप द्वारा ध्यानाग्नि में कर्मों को विनष्ट करके मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति करें। पानंद मनि ने परमार्थविशति में आत्भध्यान आत्मतत्व में एकाग्र होने की भावना बताई है देव तत्प्रतिमा गुरु मुनि जन शास्त्रादि मन्य महे । सर्व भक्तिपरा वयं व्यवहृतो मार्ग स्थिता निश्चयात् ॥ अस्माकं पुनरेकताश्च यणतो व्यक्तीभवश्चिद् गुणस्फारी भ्रूतमति प्रबंध महसामात्मैव तत्वं परम् ॥१३॥ जब हम व्यवहार मार्ग में चलते हैं तब हम श्री जिनेन्द्र देव छनको प्रतिमा, जिनगुरु व साधुजन तथा शास्त्रादि सबकी भक्ति करते हैं परन्तु हम जब निश्चयमार्ग में जाते हैं तब प्रगट चैतन्य गुण से झलकती हुई भेदविज्ञान की ज्योति जल जाती है उस समय हम एक भाव में लय हो जाते हैं तब हमको उत्कृष्ट तत्व एक मात्मा हो अनुभव में आता है अर्थात् जहाँ शुद्ध आत्मा के सिवाय अन्य कुछ अनुमव में न आवे वही निर्मल आत्मध्यान है। जिनके भीतर ज्ञान अग्नि बढ़ती सम्यक्त को पवन से । इंधन कर्म जलाय, दोष मन सब कर दूर निज रमण से ५ सम्यक्त्व ज्ञानवृत्तत्रय ममधमते ज्ञान मात्रेण मूढा। . "लपित्वा जन्मदुर्ग निरूपमितं सुखा ये यियासंति सिद्धि 1.।

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