Book Title: Suryaprajnapti Chandraprajnapti
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
ये दोनों उपांग आगम हैं - इनमें ये मांस भोजन के विधान कैसे हैं ? यह आश्का अज्ञातकाल से चली आ रही है।
सूर्यप्रज्ञप्ति के वृत्तिकार मलयगिरि ने भी इन मांसभोजनविधानों के संबंध में किसी प्रकार का ऊहापोह या स्पष्टीकरण नहीं किया है।
एक कृत्तिका नक्षत्र के भोजन विधान की व्याख्या करके शेष नक्षत्रों के भोजन कृत्तिका के समान समझने की सूचना दी है।
शेष नक्षत्रों के भोजन विधानों की व्याख्याएँ न करने के संबंध में यह कल्पना है कि - मांसवाची शब्दों की व्याख्या क्या की जाय ?
अथवा मांसवाची भोजनों को वनस्पतिवाची सिद्ध करने की कल्पना करना उन्हें उचित नहीं लगा होगा ? या उस समय ऐसी कोई परम्परागत धारणा न रही होगी?
स्व. पूज्य श्री घासीलाल जी म. ने इस भोजन सूत्र को प्रक्षिप्त सिद्ध किया है और कतिपय मांसनिष्पन्न भोजनों को वनस्पतिनिष्पन्न भोजन भी सिद्ध किया है। ये दानों परस्पर विरोधी कार्य हैं।
नक्षत्र भोजन का यह सूत्र यदि प्रक्षिप्त है तो मांसनिष्पन्न भोजनों को वनस्पत्यादि निष्पन्न भोजन सिद्ध करने से लाभ ही क्या है ? क्योंकि सूर्यप्रज्ञप्ति के प्ररूपक लौकिक कार्यों की सिद्धि के लिये सावध विधि का प्ररूपण ही नहीं कर सकते और सूत्रागमों का गुंथन करने वाले गणधर ऐसे भ्रामक शब्दों का प्रयोग भी नहीं करते, यह निश्चित है। इसलिये हमारे बहुश्रुतों को इस सूत्र के संबंध में सर्वसम्मत निर्णय घोषित करना ही चाहिये।
जैनागमों में नक्षत्र गणना का क्रम अभिजित से प्रारम्भ हो कर उत्तराषाढ़ा पर्यन्त का है। प्रस्तुत प्राभृत के इस सूत्र में नक्षत्रों का क्रम कृत्तिका से प्रारम्भ हो कर भरणीपर्यन्त का है।' उप्लब्ध अनेक ज्योतिष ग्रन्थों में भी यह नक्षत्र गणना का क्रम विद्यमान है – अत: यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत
१. चन्द्र-सूर्य-प्रज्ञप्ति के संकलनकर्ता श्रुतधर स्थविर ने नक्षत्र गणना क्रम की पाँच विभिन्न मान्यताओं का निरूपण करके स्वमान्यता का प्ररूपण किया है। पाँच अन्य मान्यताओं का निरूपण - अट्ठाईस नक्षत्रों का गणनाक्रम - १. कृत्तिका नक्षत्र से भरणी नक्षत्र पर्यन्त २८ नक्षत्र २. मघा नक्षत्र से अश्लेषा नक्षत्र पर्यन्त २८ नक्षत्र ३. धनिष्ठा नक्षत्र से श्रवण नक्षत्र पर्यन्त २८ नक्षत्र ४. अश्विनी नक्षत्र से रेवती नक्षत्र पर्यन्त २८ नक्षत्र ५. भरणी नक्षत्र से अश्विनी नक्षत्र पर्यन्त २८ नक्षत्र स्वमान्यता का प्ररूपण - अभिजित नक्षत्र से उत्तराषाढ़ा नक्षत्र पर्यन्त २८ नक्षत्र । - चन्द्र-सूर्य-प्रज्ञप्ति, दशम प्राभूत, प्रथम प्राभृत-प्राभृत, सू. ३२ नक्षत्र गणना के इस क्रम के विधान से यह स्पष्ट है कि दशम प्राभृत व सप्तदशम प्राभृत-प्राभृत में निरुपित नक्षत्रभोजनविधान सूर्यप्रज्ञप्ति के संकलनकर्ता की स्वमान्यता का नहीं है। आश्चर्य यह है कि अब तक सम्पादित एवं प्रकाशित चन्द्र-सूर्य प्रज्ञप्तियों के अनुवादकों आदि ने इस संबंध में स्पष्टीकरण लिख कर व्यापक भ्रान्ति के निराकरण के लिये सत्साहस नहीं किया।
[ २० ]