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मेरा आनंद हंसाने में नहीं, हंसना भी नहीं
मेरा आनंद तो मुझ अंतर की गहराइयों में शान्तिरूप है, राग रहित निराकुल भी है.
मेरा आनंद स्वतंत्र और स्वाधीन भी है कोई भी भाव, परिस्थिति मुझे, मेरे आनंद से जुदा न कर सके, आंसू भी हंसते ही हैं.
आनंद
मेरा आनंद रोम रोम में पुलकित, ऐसा आनंद और शांति का सुमेल कि कोई भी शुभाशुभ भाव शोक रूप ही अनुभव में आतें हैं.
मैं ही आनंदमय, मैं और मेरा आनंद दो नहीं हंसना - रोना, आता-जाता, मैं आनंदमय एक सदैव शांत, गहन, भरपूर, अचल अनुभव ही हूं.
नोट : क्या है वो जिंदगी जिसमें कोई नामुमकिन सपना तक न हो.
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