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यदि मैं स्वयं को पहचानूं, जानूं, और मानूं तो दुख ही कहां मैं तो पूर्ण सुखमय ही हूं दुख से तो हो सकता मैं कोसों दूर क्षण में ज्ञान से, फिर क्यों मैं करूं बर्बाद समय को.
मुझे तो दुख का अंत करना है, न की दुख के संग जीने का आदि बनना है. मुझे तो स्वयं को सुख-शांतिमय ज्ञानानंद को ही मेरा जान मान सुख का ही सदैव अनुभव करना है समय का क्या ?
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