Book Title: Surakshit Khatra
Author(s): Usha Maru
Publisher: Hansraj C Maru

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Page 208
________________ - विधि का विधान यह प्रभु ने देखा विधि का विधान है अदभुत, अलौकिक, अनुपम, सृष्टि ही है अनादि, अनंत संसार और मुक्त दशा ही है. प्रभु ने विश्व को देखा ही छह द्रव्यों में, और सारे छह द्रव्य स्वयं का कार्य सदा ही स्वयं ही स्वयं से ही करते हैं. यही होता है, संभव है, सर्वज्ञ ने यही देखा भी है जीव ही कल्पनाएं करता है, कि यह शरीर मेरा, पैसा मेरा, घर परिवार भी मेरा यही जूठी कल्पनायें, अज्ञान, मिथ्यात्व ही जीव का महापाप, अपराध और दुख भी है जीव जो है तो ज्ञानस्वरूप जाननहार पर उसकी दशा इस संसार में है ही बहुत दया, करुणा के पात्र, अज्ञानमय जीव जीता ही है अज्ञानरूप, दुखरूप ही परद्रव्य की कल्पनाएं, परद्रव्यों में ही सुखाभास, दुःख का अनुभव भी किया परद्रव्यों में ही रमण किया परद्रव्यों में ही डूब संसारी बन दुखमय ही रहा अब ऐसे जीव को सर्वज्ञ बताते हैं, हे जीव, तू कौन है? कहाँ से है ? क्या है ? वास्तविक में तेरा स्वरूप क्या है? जान, समझ, यही तेरे सुख का आधार है 207

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