Book Title: Surakshit Khatra
Author(s): Usha Maru
Publisher: Hansraj C Maru

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Page 207
________________ इसीलिये जीव राग में आनंद शांति कभी भी नहीं पाता चाहे वह राग की गहराइयों को छू ले अथवा उँचाईयों को रहता अशांत, और आनंद शांति की खोज में लगता है यही खोज उसे वीतराग की और लाती है, खींचती है. भव्य जीव अवश्य कहीं न कहीं, कभी न कभी तो वीतराग कोई गुरु से, जिनवाणी माँ से सुन, स्वयं में ही, स्वयं के स्वरूप को जान, मान कर आगे बढ़ता अनुभव भी करता है तभी उसे खद के राग के पागलपन का भी खयाल आता है. * * * 206

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