Book Title: Surakshit Khatra
Author(s): Usha Maru
Publisher: Hansraj C Maru

View full book text
Previous | Next

Page 206
________________ - राग राग मेरे में ही होते भाव हैं न, बड़े दिलचस्प भी हैं राग में रंग है, विविधता है, सीखने / सिखाने, हंसने / रुलाने की क्षमता भी है, गहराइयां भी तो अनंत हैं, जैसे जैसे जीव रागों को करता भोगता है, वैसे वैसे ही रागों में डूबता भी है. भले फिर राग हो चोरी डाके का, अथवा दया दान का भले राग हो क्रिकेट, फुटबाल का अथवा हो शतरंज का भले राग हो गाने का, पढने का, अथवा हो कलाकारी का राग अनंत, गहराइयां भी अनंत, अनुभव भी हैं अनंत. इसी अनंत में जीव डूब जाता है, वीतराग भी कुछ है, ऐसे विचार, विश्वास को भी खो बैठता है, एक बात है फिर भी जीव जितना जितना राग करता है उसे साथ में दुःख का भी अनुभव है, आकुलता / व्याकुलता और क्षणिकता का भी अनुभव है. 205

Loading...

Page Navigation
1 ... 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219