Book Title: Surakshit Khatra
Author(s): Usha Maru
Publisher: Hansraj C Maru

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Page 204
________________ ज्ञान ही तो शुद्ध परिपूर्ण, खुद में टिकने वाला ज्ञान ही तो खुद से है, खुद ही जाननहारा प्रभु ही मेरा ज्ञान है मेरे ज्ञान का उपयोग भी प्रभु ही जानूं, प्रभु ही मानूं, प्रभु का है संग भी. प्रभु है मुझ में, मैं हूं प्रभुमय, मेरा ही ज्ञान भी मैं ही जानता जगत को मैं ही हूं ध्रुव तारा प्रभु ही मेरा ज्ञान है मेरे ज्ञान का उपयोग भी प्रभु ही जानूं, प्रभु ही मानूं, प्रभु का है संग भी. * * * 203

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