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नई कली खिली
चांद, सूरज, फूल, खुशबू, हुए हैं सभी पुराने नई एक कली खिली, मैं तो हूं उसीका दीवाना नित्य, अकारक, अवेदक, अपरिणामी तो है ही पुराना तर, सर्वगुणांश, प्रगट पर्याय का ही दीवाना
हर पर्याय में, हर समय में, मेरी ही ध्रुव चैतन्य
ही जीवित प्रत्यक्ष देखने वाला ही हूं मैं दीवाना
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चांद, सूरज, फूल, खुशबू, हुए हैं सभी पुराने नई एक कली खिली, मैं तो हूं उसीका दीवाना अकारक, अवेदक, अपरिणामी ही तो ध्रुव रूप में रहकर ही, हर समय, नया खिलता है, न इसी खिलेरूप को ही जानता मानता मैं ही अनुभवता नई खिली कली का ही हूं मैं दीवाना
चांद, सूरज, फूल, खुशबू, हुए हैं सभी पुराने नई एक कली खिली, मैं तो हूं उसीका दीवाना यही एक बात मैंने अनंत समय से की नहीं ध्रुव की बातें भी अनंत बार की, यहां तक कि ध्रुव प्रभु परमात्मा को भी अनंत बार मैं जा समवसरण में, मिल कर भी तो आया हूं
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