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कल आज और कल
कल का किया आज नहीं और नहीं आज से कल, मैं तो कल भी था, आज भी और भी रहूंगा कल कल का किया आज नहीं और नहीं आज से कल, मैं तो कल भी था, आज भी और भी रहूंगा कल.
मैं तो हूं पूर्ण, अबद्ध. अस्पर्शी और हूं स्वतंत्र. कैसे हो सकता बंधा, कल से आज और आज से कल कल का किया आज नहीं और नहीं आज से कल, मैं तो कल भी था, आज भी और भी रहूंगा कल.
ये तो है कहानी संयोगों की, संयोग ही हैं बंध, संयोग से ही है वियोग और बंध से ही मुक्त कल का किया आज नहीं और नहीं आज से कल, मैं तो कल भी था, आज भी और भी रहूंगा कल.
संयोग वियोग ही बनती कहानी सुख दुःख की, संयोग वियोग ही बनती अनुभूति दुःख की ही कल का किया आज नहीं और नहीं आज से कल, मैं तो कल भी था, आज भी और भी रहूंगा कल.
मैं तो हूँ सदा शांत सुखमय, मुझ को न संयोग और वियोग. मै तो हूँ अकेला ही पूर्ण त्रिकाल सत कल का किया आज नहीं और नहीं आज से कल, मैं तो कल भी था, आज भी और भी रहूंगा कल.
इस शरीर की ही है गर्मी और शरीर का ही कंपन, मैं तो हूँ निष्कम्पन, पूर्ण, अरुपी और हूँ ज्ञानस्वरूप कल का किया आज नहीं और नहीं आज से कल, मैं तो कल भी था, आज भी और भी रहंगा कल.
कल भी न था बंधा और नहीं हूँ बंधा आज, बस मैं जान पाया इस सत को ही गुरु से आज कल का किया आज नहीं और नहीं आज से कल मैं तो कल भी था, आज भी और भी रहूंगा कल.
गुरुदेव और शास्त्रों को सदा रहे मेरा प्रणाम, जिन्होंने मुझ से न बंधा, बताया मेरा मुक्त स्वरूप कल का किया आज नहीं और नहीं आज से कल, मैं तो कल भी था, आज भी और भी रहूंगा कल.
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